नई दिल्ली : लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में गुरुवार को एक सम्मेलन में अपने भाषण के मध्य आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि पूरे विश्व के बैंकों के गवर्नरों को अच्छे निदान खोजने के लिए नवीन नियम के निर्माण की आवश्यकता है. राजन ने सचेत किया कि केंद्रीय बैंक की पहलों के अनुसार क्या सही है और क्या नहीं? इस विषय में वैश्विक नियमों पर चर्चा करने का यह उचित समय है. राजन ने दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को स्पष्ट रूप से सचेत किया है कि शीघ्र नवीन नियमों को परिभाषित करें. वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़े खतरे की घंटी बज रही है.
आने वाला है 'ग्रेट डिप्रेशन'
राजन ने अनुरोध किया कि मौद्रिक नीतियों को अगर और अधिक उदार रूप दिया गया तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था खतरे में आ सकती है. आगामी समय में इस पर अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने की आवश्यकता होगी. यदि ऐसे ही चलता रहा तो पूरी दुनिया को 1929-30 के 'ग्रेट डिप्रेशन' जैसी विभिषक मंदी का सामना फिर से करना पड़ सकता है.
भारत नहीं है खतरे के दायरे में
राजन ने बताया कि भारत में स्थिति भिन्न हैं. भारत अभी अपने विकास के प्रथम चरण में है. अभी वहां आरबीआई को निवेश हेतु प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत दरों में कमी करनी होगी. लेकिन विकसित देशों पर खतरों के बादल छाए हुए है.
राजन है अर्थशास्त्र के ज्योतिषाचार्य
इससे पहले 2008-09 में जिस वैश्विक मंदी से विश्व को गुजरना पड़ा था. उसको लेकर राजन ने कई वर्षो पूर्व ही घोषणा कर दी थी. तब राजन को दसों दिशाओं से आलोचनाएँ मिली थी. अमेरिकन फेडरेल बैंक के चीफ ने राजन को पिछड़ी सोच का व्यक्ति कह कर सम्बोधित किया था और कहा था कि दुनिया ऐतिहासिक दौर से गुजर रही है. लेकिन उसके बाद में राजन की भविष्यवाणी सच निकली. ऐसे में राजन की इस चिंता को हल्के में लेना बहुत बड़ी भूल साबित हो सकती है.