कहीं कच्ची उम्र में ही हाथ से न छूट जाए वह स्लेट पेंसिल
कहीं कच्ची उम्र में ही हाथ से न छूट जाए वह स्लेट पेंसिल
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अनामिका  5 साल की थी तब से अपने भाई का हाथ पकड़कर स्कूल जाया करती थी, पेम से स्लेट पर अक्षर और अंक लिखना उसे अच्छा लगता था, कभी अपनी भावनाओं के आंसूओं के तौर पर बह जाने पर वह खुद के द्वारा लिखे गए अंकों को आंसूओं से ही पोंछ लिया करती थी। मगर जब वह तेरह वर्ष की हुई तो उसने उसके भाई के साथ स्कूल जाना बंद कर दिया। अब उसका भाई अकेला स्कूल जाता और वह घर के कामों में ही परिवार के सदस्यों का हाथ बंटाती। अब वह न तो काॅपी पर अंक लिखती न ही कोई ईबारत उतारती उसे अब इससे कोई सरोकार नहीं रहा।

पाकिस्तान में तालिबान अधिकृत क्षेत्र में तालिबानियों के फतवे से लौहा लेने वाली मलाला यूसुफज़ई का आज 12 जुलाई 1997 को जन्म हुआ और 12 जुलाई के दिन हर कहीं उसके द्वारा लड़कियों की शिक्षा को लेकर चलाए गए अभियान व संर्घष की सराहना की गई। इस दौरान भारत में भी हर कहीं उसकी तारीफ की गई लेकिन इसी के साथ प्रारंभ हो गया मंथन का वह दौर जिसमें यह माना गया है कि क्या वाकई में हर लड़की को समुचित शिक्षा मिल पा रही है। तमाम नियमों और दावों के बाद भी हर वर्ग फ्री और अनिवार्य शिक्षा का समान लाभ उठा पा रहा है। यदि हम समाज में गहराई में झांककर देखेंगे तो यही नज़र आएगा कि इस प्रयास में एक बड़ी खाई रोड़ा अटका रही है।

जी हां, भारत में ही ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां लड़कियां कच्ची उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं। उन्हें गृहस्थी के कामों में उलझा दिया जाता है। हमारी सामाजिक रूढि़यां बाल मन पर इस कदर हावी हो जाती है जैसे वह स्वयं ही स्कूल छोड़ने के लिए अपने मन की तैयारी कर लेती है और फिर उसकी पढ़ाई में विशेष रूचि नहीं रह जाती है। वह अपना बचपन और भविष्य सब दांव पर लगा देती है। औपचारिक शिक्षा बीच में ही छोड़ दिए जाने के कारण उसमें आत्मनिर्भर बनने की भावना विकसित नहीं होती और फिर उम्र पक जाने के बाद उसे कदम कदम पर शोषण का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कई बार उसकी आत्मा के साथ भी बलात्कार किया जाता है लेकिन वह सिसकियां लेने और चीखने तक ही सिमटकर रह जाती है।

इसके दूसरी ओर समान और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देह व्यापार में लिप्त महिलाओं की लड़कियों को भी नहीं मिल पाता। सामाजिक स्तर पर तिरस्कार और गुमनामी का जीवन जीने के कारण इनके बच्चे कभी भी मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाते और न ही इनके बच्चों की शिक्षा के लिए कोई प्रयास किए जाते हैं। मध्यप्रदेश में राजस्थान सीमा से सटे क्षेत्र ढोढर में परंपरागततौर पर वर्षों से देह व्यापार में लिप्त बांछड़ा समुदाय के लोग अपनी बालिकाओं को कम उम्र में ही देह व्यापार के लिए तैयार कर देते हैं ऐसे में उनके हाथों में काॅपी और पेन कभी आ ही नहीं पाता। इनका बचपन भी इनसे छिन जाता है। ऐसे में बालिकाओं की शिक्षा की दिशा में भारत और विश्व के कई विकासशील और विकसित देशों में भी काफी काम करने की जरूरत महसूस हो ही जाती है।

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