ऐसे हुआ था मां गंगा का धरती पर अवतरण
ऐसे हुआ था मां गंगा का धरती पर अवतरण
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प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरा का पावन पर्व ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. गंगा दशहरा पर आस्था की डुबकी लेने से मां गंगे पापों से मुक्त कर देती हैं. गंगा में स्नान करने से लोगों को न केवल मन की शांति प्राप्त होती है, बल्कि इस दिन दान करने की भी विशेष अहमियत होती है. गंगा भारत में बहने वाली एक नदी है. यह उत्तराखंड के गंगोत्री से निकलती है. भारत के कई अहम जगहों से होकर गुजरती है. सनातन धर्म में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है. इन्हें सनातन धर्म में मां का स्थान प्राप्त है. ऐसा कहा जाता है कि गंगा का जल पुण्य देता है तथा पापों का नाश करता है. आइए आपको बताते है मां गंगा के धरती पर अवतरित होने की कहानी...

ऐसे हुआ मां गंगा का अवतरण:-
एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया. उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला. इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया. यह यज्ञ के लिए विघ्न था. परिणाम स्‍वरूप अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना आरम्भ कर दिया. सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला. फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया. खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान 'महर्षि कपिल' के तौर पर तपस्या कर रहे हैं. उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है. प्रजा उन्हें देखकर 'चोर-चोर' चिल्लाने लगी तथा इस प्रकार महर्षि कपिल की समाधि टूट गई. महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले और सारी प्रजा भस्म हो गई. इन मृत व्यक्तियों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था.

भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को बोला तो भगीरथ ने 'गंगा' की मांग की. इस पर ब्रह्मा ने कहा- 'राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? लेकिन क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति सिर्फ भगवान शंकर में है. इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान महादेव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए.' महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया. उनकी कठोर तपस्या से खुश होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा. तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं. इसका नतीजा यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका. महाराज भगीरथ ने भगवान महादेव की आराधना में घोर तप आरम्भ किया. तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया. इस तरह शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की तरफ मुड़ी.

वही इस तरह भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए. उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया. युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है. गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है. इसी वजह से भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है.

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