गणेश जयंती के दिन जरूर पढ़े की कथा
गणेश जयंती के दिन जरूर पढ़े की कथा
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आप सभी जानते ही होंगे हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश (Lord Ganesha) को सबसे अहम माना जाता है। ऐसे में इस साल गणपति की जयंती 4 फरवरी को मनाई जाने वाली है। आप सभी को बता दें कि माघ मास (Magh Month) के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानि कि 04 फरवरी 2022 को गणेश जयंती है। ऐसे में यहकहा जाता है गणपति (Ganpati) एक ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा करने से जीवन से जुड़ी सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में शुभता बनी रहती है। तो अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणेश जयंती की कथा। चतुर्थी तिथि 04 फरवरी 2022, शुक्रवार को प्रात:काल 04:38 बजे से लेकर 05 फरवरी 2022, शनिवार को प्रात:काल 03:47 मिनट तक रहेगी। वहीं दिल्ली में गणेश चतुर्थी पर गणपति की पूजा का विशेष शुभ मुहूर्त प्रातःकाल 11:30 से दोपहर 01:41 बजे तक रहेगा। वहीं मुंबई में गणपति भक्तों के लिए प्रात:काल 11:44 से दोपहर 02:01 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।

गणेश जयंती की कथा- पौराणिक कथा में बताया गया है कि भगवान शिव एक दिन स्नान के लिए भोगवती गए थे, उसके पश्चात माता पार्वती भी स्नान के लिए चली गईं। स्नान के दौरान उबटन से उन्होंने एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी। ​फिर उनका नाम गणेश रखा। माता पार्वती ने गणेश जी को द्वार पर पहरा देने को कहा। उन्होंने गणेश जी से कहा कि जब तक वे स्नान करके वापस न आ जाएं, तब तक किसी को अंदर न आने देना। माता की आज्ञा पाकर गणेश जी पहरा देने लगे और माता पार्वती स्नान करने लगीं। इसी बीच भगवान शिव भोगवती से स्नान करके कैलाश पर वापस आ गए और पार्वती जी से मिलने पहुंचे। लेकिन द्वार पर पहरा दे रहे गणेश जी ने उनको रोक दिया। वे कई बार बाल गणेश को समझाने की कोशिश किए, लेकिन वे शिव जी को अंदर नहीं जाने देते।

कुछ समय व्यतीत होने के बाद शिव जी को क्रोध आ गया और उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर वे अंदर चले गए। तब तक उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ। तब माता पार्वती को लगा कि भोलेनाथ भूख से व्याकुल हैं, तो उन्होंने दो थाली में भोजन परोसा और शिव जी से खाने का निवदेन किया। तब उन्होंने पूछा कि यह दूसरी थाली किसके लिए है। तब उन्होंने बताया कि द्वार पर पहरा दे र​हा बालक पुत्र गणेश है। शिव जी ने फिर उनको पूरी बात बताई, तो पार्वती जी विलाप करने लगीं। तब भगवान शिव ने एक हाथी का मस्तक गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया और इस प्रकार से गणेश जी को दोबारा जीवन मिला।

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