''आपकी आँखें तो खुली रहेंगी, पर आप कुछ देख नहीं पाएंगे, आपके कान खुले रहेंगे, पर आप कुछ सुन नहीं पाएंगे, और सबसे बड़ी बात, आप सब कुछ समझ जाओगे, पर आगे किसी को समझा नहीं पाएंगे।''
हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म 'क़ाबिल' का यह डायलॉग तो आपने सुना ही होगा। यह संवाद हमारे गूंगे, बहरे और अंधे सिस्टम गहरा कटाक्ष है।
अब आपको बता दें कि इतने गहरे अर्थ लिए ये मासूम संवाद लिखें है लेखक, शायर और गीतकार संजय 'मासूम' ने। उनके संवाद चुटीले है, मजेदार है, लेकिन उतने ही मारक और धारदार। उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले के बालापुर गाँव में पैदा हुए संजय 'मासूम' फिल्म 'काबिल' से पहले फिल्म जन्नत-2 , कृष, कृष-3, गुंडे, इंडियन सहित कई फिल्मों के डायलॉग लिख चुके हैं।
उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'धर्मयुग' में बतौर उप-संपादक काम किया। इसके बाद वह उन्होंने नवभारत टाइम्स में कुछ वर्ष पत्रकारिता की। इस दौरान वे टीवी सीरियल्स लिखते रहे। इसके बाद वे फिल्म लेखन की दुनिया में आ गए। जहाँ उन्होंने एक से बढ़कर संवाद लिखें। उनकी आगामी फिल्म 'चंद मामा दूर के' है। इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत और नवाज़ुद्दीन सिद्दकी मुख्य भूमिका में हैं।
अपने साहित्यिक रुझान के बारे में वे बताते है, 'मैं उस समय में इलाहाबाद में अपनी पढाई कर रहा था। उस दौरान मुझे शायरी में गहरी दिलचस्पी थी। दुष्यंत सहित दूसरें शायरों को पढ़ना खूब अच्छा लगता था। उस समय मैं भी शायरी करने लगा था। मेरा पहला शेर था,
''ज़मीं पर रहने की आदत नहीं इन्हें शायद,
यहाँ के लोग जो अक्सर हवा में उड़ते हैं।''
फिल्म 'काबिल' के संवाद लिखने की चुनौती पर वे कहते है कि हर फिल्म लिखने के पहले एक चुनौती होती हैं। लेकिन 'क़ाबिल' के किरदार चूँकि अंधे थे सो यह एक दोहरी चुनौती थी। एक किरदार है जो देख नहीं सकता, लेकिन वह प्रेम करता है। फिर अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेते हैं। जिसे संवाद के जरिये बयां करने थोड़ा चुनौतीपूर्ण रहा।
जब राही साहब ने कहा- 'ये नया 'मासूम' कौन?
संजय मासूम प्रसिद्ध शायर राही मासूम रज़ा से मुलाकात का वाकया बताते हुए कहते है, ''मैं उस मुम्बई में नया था। मुझे साहित्यिक गोष्टियों में जाने का बहुत शौक था। मुझे जब शायरी सुनाने के लिए संजय 'मासूम' नाम से आमंत्रित किया गया तो, राही साहब ने तुरंत कहा-भई, मुम्बई में एक और 'मासूम' कौन आ गया। इसके बाद जब कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो मैंने उनसे आशीर्वाद लिया। इसके बाद तो उनका मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा।''
रितिक को सिनेमा की गहरी समझ
संजय फिल्म 'काबिल' के अभिनेता रितिक रोशन के बारे में बताते है कि उन्हें सिनेमा के हर पहलू की गहरी समझ है। वे हर काम को बेहतर तरीके से करने में विश्वास करता है। उनके साथ काम करने में एक एनर्जी का अहसास होता है। वे आगे बताते है कि रितिक फिल्म निर्माण के हर पहलू में शामिल होते हैं। यहाँ तक फिल्म की स्क्रिप्टिंग से लेकर दूसरे पहलू पर सजेशन देते हैं।
उनके प्रसिध्द डायलॉग -
-अगर हम सच के साथ है ....तो हमें जीतने तक हार नहीं माननी चाहिए। (घायल-वंस अगेन)
-संस्कार से संसार जीता जाता है...अहंकार से नहीं। (घायल-वंस अगेन)
-बुराई में ताकत जितनी भी हो .....उसका अंतिम संस्कार अच्छाई ही करती है। (कृष 3)
-मरते तो वो है जो जनम लेते है। (कृष 3)
-हम हाथ मिलाना भी जानते है, हाथ उठाना भी... हम गांधी जी को भी पूजते हैं, चंद्रशेखर आजाद को --भी......मैं भी पहले प्यार से समझाता हूं फिर हथियार से।(फिल्म-इंडियन)
-शिकारी अपने शिकार के साथ दोस्ती नहीं करता। (फिल्म-इंडियन)
- मेरे लिए माँ और मुल्क एक है। (फिल्म-इंडियन)
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