उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। इसे लेकर समाजवादी सरकार भी न केवल दोबारा सत्ता में आने के लिये हाथ पैर फैलाने लगी है वहीं अपनी सरकार की छबि सुधारने के लिये भी अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रयास शुरू कर दिये है।
छबि सुधरेगी या नहीं या फिर यूपी की जनता पर इसका असर होता है या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन छबि सुधारने के नाम पर मंत्रियों की बलि जरूर लेने का सिलसिला शुरू हो गया है। सोमवार को ही एक के बाद एक दो मंत्रियों को अखिलेश ने निपटाकर यह बताने का प्रयास किया है कि वे साफ सुथरी छबि वाले है और कोई भी इस छबि पर दाग लगाने का प्रयास करेगा तो उसकी खैर नहीं। खैर यह बात अलग है कि अखिलेश सरकार के कितने मंत्री भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबे हुये है या फिर अखिलेश पर ही भ्रष्टाचार के छींटे लगे हुये है, परंतु अपने दामन के दाग को छुपाने के लिये मंत्रियों को बर्खास्त करना न्यायसंगत तो प्रतीत नहीं होता।
यहां किसी मंत्री का पक्ष नहीं लिया जा रहा है और न ही हम अखिलेश या उनकी सरकार के हिमायती बनना चाहते है परंतु जो बात यूपी के राजनीतिक के गलियारे में चल रही है, उसे ही सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। यूपी के राजनीतिक गलियारों में अखिलेश के ही खास समझे जाने वाले यह कह रहे है कि मंत्रियों को हटाने के पहले वे अपने दामन को भी तो देखे। यदि सुधार करना ही था तो पांच सालों तक इंतजार क्यांे किया गया।
यदि मंत्रियों के चरित्र को देखा जाये तो कोई भी दूध का धुला नहीं होगा और यदि बर्खास्ती का सिलसिला जारी रहता है तो कहीं ऐसा न हो कि अखिलेश अकेले ही रह जाये! चुनाव में जीतकर दोबारा सत्ता का सुख देखने के ताने बाने बुनना कोई बुरी बात नहीं है क्योंकि जिसे सत्ता का स्वाद लग जाता है वह सत्ता के बगैर नहीं रह सकता है, संभवतः यही कारण है कि अखिलेश अब नये रूप में यूपी की जनता के सामने आना चाहते है। देखना यह है कि यूपी की जनता अखिलेश के इस नये रूप को स्वीकार करते है या नहीं या फिर जनता सब जानती है।