राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोकतंत्र का हो रहा दमन !
राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोकतंत्र का हो रहा दमन !
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नई दिल्ली, सदियों से भारत की राजनीति का केंद्र। न जाने कितने ही नामों से यह जाना गया। दिल्ली के समीप का ही क्षेत्र हस्तिनापुर अपने काल में महारथियों के बुद्धि और चातुर्य का केंद्र रहा है। इस दिल्ली में आज भी सियासी घोड़े दौड़ते हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के खेल में शह और मात का दांव इस दिल्ली में ही तय होता है। मगर बीते कुछ समय से यहां पर ऐसी राजनीति होने लगी है जिसे भारतीय राजनीति का एक स्याह अध्याय ही कहा जाए तो कुछ कम नहीं है।

केंद्र में काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का प्रमुख दल भाजपा और दिल्ली में एक तीसरी संभावना के तौर पर अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी के बीच राजनीति की रस्साकशी प्रारंभ से ही जारी है। प्रमुख सचिव स्तरीय पद हो या फिर ब्यूरोक्रेसी के किसी विभाग को अपने अधीन रखने के अधिकार की बात हो। केंद्र में सत्तासीन गठबंधन का प्रमुख दल भाजपा और आम आदमी पार्टी के मतों में टकराहट होने लगती है। दोनों ही दल एक दूसरे के स्वार्थ और हितों को अनदेखा नहीं कर पाते हैं।

इतना ही नहीं उपराज्यपाल जैसे संवैधानिक पद को भी ये पार्टियां अपना - अपना हथियार बना लेती हैं और अपने हित साधने का प्रयत्न करती हैं। एक तरह से उपराज्यपाल दोनों के बीच समन्वय की कड़ी कम और दूत अधिक बन जाते हैं। इतना ही नहीं शालेय विकास, सड़क, नगरीकरण, स्वच्छता, नागरिक परिवहन, सुरक्षा, आवास आदि मसलों पर दोनों ही दलों की खींचतान का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। जनता कई तरह की परेशानियों का सामना करने के लिए मजबूर है।

केेंद्र और राज्य सरकार के बीच जिस तरह से राजनीति की रस्साकशी जारी है उससे शहर के कई क्षेत्रों में सुव्यवस्थित विकास नहीं पहुंचा है। इसके बाद भी दोनों पार्टियों का आपसी राजनीतिक विरोध जारी है। यह विरोध कभी आम आदमी पार्टी के विधायकों पर की जाने वाली कार्रवाई को लेकर नज़र आता है तो दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए आॅड ईवन फाॅर्मूले को लेकर यह सब देखने को मिलता है। दिल्ली पुलिस के नाम के आगे औपचारिकता के लिए दिल्ली पुलिस लिख दिया गया है मगर यहां आने वाले स्वयं ही नहीं समझ पा रहे हैं कि देश भक्ति, जन सेवा का नारा देने वाले अब किस ओर जा रहे हैं।

राज्य सरकार अपने संसाधन कम होने की बात कह रही है और विकास न होने पर केंद्र सरकार को दोषी बना रही है तो केंद्र सरकार अपने अनुसार विकास की रफ्तार चलाना चाहती है। ऐसे मेें दिल्ली के विकास के लिए लाए जाने वाले 14 विधेयक लंबित हैं। न तो उन पर केंद्रीय मंत्रालय हस्ताक्षर कर पा रहा है न ही राज्य सरकार अपनी किसी योजना को अच्छी तरह से संचालित कर पा रही है। आम आदमी पार्टी के अधिकांश विधायक किसी न किसी कारण जेल पहुंचाए जा रहे हैं

हालांकि आप नेताओं ने इस मामले में भी भाजपा पर आरोप लगाए हैं कि यह सब दलगत राजनीति के कारण हुआ है। मगर भाजपा का इस मामले में अपना अलग तर्क है वह आम आदमी पार्टी के नेताओं को भ्रष्टाचार में लिप्त बताकर उनके असंगत आचरण की बात कह रही है। अब ऐसे में प्रभावित तो दिल्ली का आम आदमी ही हो रहा है। मोदी सरकार ने दिल्ली में सभी को आवास उपलब्ध करवाने का वायदा किया था। मगर फिलहाल ऐसा होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। मोदी - मोदी और केजरी - केजरी के नारे लगाने वालों को दिल्ली का विकास भगवान भरोसे ही दिखाई दे रहा है।

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