हिंदूस्तान सदियों से ही बाहरी ताकतों के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां की जलवायु ऐसी है कि यह इसे विविधताओं भरा देश बनाती है। ऐसी विविधताऐं जो कि इसे जल, जंगल और जमीन से संपन्न बनाती है। इसके गर्भ में कई रत्न भरे हैं तो वहीं इसकी धरती पर फसलों से सोना खिरता है। किसान का पसीना खेतों में फसल बनकर लहलहाता है। हालांकि आधुनिक दौर के पर्यावरणीय और कई कारणों के चलते इसकी उर्वरता पर असर हुआ है लेकिन यह देश आज भी कई शक्तियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है।
ऐसी ही शक्तियां हैं भारत के समीपवर्ती देश जो कि भारत की जमीन पर गाहे - बगाहे नज़रें गड़ाए रहते हैं। इनमें जहां पाकिस्तान प्रमुख है तो चीन भी भारत के भूभाग को हथियाने वाले प्रयास कम नहीं कर रहा है। लाईन ऑफ एक्च्युअल कंट्रोल का कई बार उल्लंघन करते हुए चीन भारत के सीमा क्षेत्र में दाखिल हो जाता है। चीन छद्म तरह से भारत की सीमा पर अपना अधिकार जता रहा है। पहले जहां यह अपने सैनिकों को अरूणाचल प्रदेश से सटे क्षेत्रों में तैनात कर दिया करता था वहीं अब यह भारत की सीमा में ही अपना ट्रांसमीशन टॉवर बनाने लगा है।
हद तो तब हो गई जब इसने छद्म तरीके से यहां के गांवों में रहने वाले ग्रामीणो से फोन लाईन के माध्यम से संपर्क कर सेना की हलचल की जानकारी ली। सीधे तौर पर यह गुप्तचरी का मामला सामने आता है। चीन द्वारा इस तरह से अभियान चलाने से यह जाहिर है कि वह भारत के भूभाग पर अपना कब्जा जमाना चाहता है। यूं भी वह पाकिस्तान को सहायता पहुंचाकर अपना स्वार्थ साधने का प्रयास करता रहा। है।
ऐसे में भारत की विदेश नीति चीन को लेकर सख्त होना चाहिए। हालांकि चर्चा से ही सभी समस्याओं का समाधान संभव है और वर्तमान हालात में चीन के साथ युद्ध कोई विकल्प नहीं है लेकिन मगर फिर भी भारत को चीन के साथ अपने संबंधों पर भी चीन से सवाल करने चाहिए। जिस तरह से यूएन में चीन ने आतंकी अहहर मसूद पर प्रतिबंध लगाए जाने पर वीटो का प्रयोग कर इसे खारिज कर दिया। उससे साफ जाहिर है कि उसका झुकाव पाकिस्तान की ओर है मगर भारत को यूएन में ही चीन की साम्राज्वादी मंशा को उजागर करना चाहिए।
जिससे वैश्विक स्तर पर चीन के सामरिक विस्तार को रोका जा सके। इस मामले में अमेरिका भारत का मददगार हो सकता है। दरअसल अमेरिका इस उभरती शक्ति को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा तो दूसरी ओर प्रशांत क्षेत्र में तैनात चीन मिसाईल अमेरिका के लिए खतरा मानी जा रही है जिसके कारण अमेरिका भारत का सहयोग चीन से विवाद के मामले में कर सकता है।
'लव गडकरी'