बैलेट से नहीं बना काम तो नारों से फैला रहे छद्म आतंकवाद
बैलेट से नहीं बना काम तो नारों से फैला रहे छद्म आतंकवाद
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एक बार फिर सेना ने अपने काफिले पर हमला कर जम्मू कश्मीर के एक इंस्टीट्यूट में दाखिल होने वाले आतंकियों को मार गिराया। देश के कई क्षेत्रों में जवानों की शहादत को नमन किया गया लेकिन सेना के काफिले पर होने वाला हमला और मुठभेड़ अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया। दरअसल इस मुठभेड़ के दौरान एक मस्जिद से पाकिस्तान समर्थित नारेबाजी की गई। जो जवान देश की रक्षा के लिए जम्मू - कश्मीर के लोगों की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने तक के लिए तैयार रहे उन्हीं का विरोध कर उस राष्ट्र के जयकारे लगाए गए जो कि पारंपरिक रूप से भारत के क्षेत्र में आतंक को समर्थन करता रहा है।

क्या यह किसी तरह के छद्म आतंकवाद का नया रूप है। जिसमें देश की एकता और अखंडता को खंडित किया जा रहा है। जम्मू - कश्मीर की मस्जिद में नारेबाजी करना शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के दौरान आईएसआईएस समर्थित ध्वज फहराए जाना और देश में सांप्रदायिक तनाव के बीज बोना आखिर यह एक अलग तरह का आतंकवाद है। जिसे पाकिस्तान के समर्थन से हवा दी जा रही है। दरअसल जब बुलेट का जोर कमजोर पड़ गया तो देश की एकता को खंडित करने का प्रयास किया गया। इसी तरह के प्रयास जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में होते भी नज़र आ रहे हैं। हालांकि इस मामले में स्पष्टतौर पर अभी कुछ भी नहीं कहा गया है।

इसे एक सियासी चाल ही माना जा रहा है जो कि तुष्टिकरण बनाम हिंदूत्व की लड़ाई के तौर पर सामने आ रही है लेकिन असल में इस बात की भी संभावना है कि कथिततौर पर कश्मीरियों के रूप में आतंकवाद से प्रेरित नौजवानों को जेएनयू में भारत विरोधी नारेबाजी के लिए लाया गया और काम होते ही सभी फरार हो गए। इस तरह की नारेबाजी से देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के हरे और केसरिए रंग को अलग कर राष्ट्र को बदरंग करने का प्रयास किया गया। देशद्रोह के आरोप में कन्हैया को पकड़ लिया गया तो दूसरी ओर खालिद फरार हो गया। हालांकि उमर खालिद ने खुद को देशद्रोही और आतंकी मानने से इंकार किया है और अब तक यह सिद्ध भी नहीं हुआ कि वह आतंकी नेटवर्क से जुड़ा है लेकिन जेएनयू में भड़काई गई सांप्रदायिक भावनाओं से यह साबित होता है कि कश्मीर को हथियाने के लिए पाकिस्तान आतंकियों की मदद से वैमनस्य को भड़का रहा है।

कहीं तो पाकिस्तान स्वयं ही यह मान लेता है कि कश्मीर को लेकर वह सीधा अधिकार जताता है तो वह उसे मिल नहीं सकता। उस अधिकार के दावे में वह कमजोर पड़ जाता है। तो ऐसे में पाकिस्तान देश में सांप्रदायिक भावनाऐं भड़काकर वर्ग विशेष को कश्मीर मसले पर अलग मत कर अपनी ओर मिलाने के लिए प्रयास कर रहा है। तभी तो अचानक पाकिस्तान को लेकर जयकारे लगाए जाते हैं और आज़ादी की मांग की जाती है। जो कश्मीर भारत की रियासतों के विलय के समय ही भारत में स्वेच्छा से मिला लिया गया हो वह भला पाकिस्तान का कैसे हो सकता है और किस आज़ादी की बात की जा रही है।

वह आज़ादी जो एक राज्य के बच्चों को किताब - काॅपियां छोड़कर एके - 47 थामने पर मजबूर कर दे। धरती के स्वर्ग और बर्फ की सुंदर सफेद चादर पर आग के गोले बरसाने और डल झील जैसी झीलों के पानी को रक्त से लाल करने पर मजबूर कर दे। आखिर यह आज़ादी है या फिर किसी अलग गुलामी की ओर आगे बढ़ा जा रहा है। वह पाकिस्तान जो भारत के पठानकोट में हुए हमले के बाद आतंकवाद का सामना कड़ाई से करने की बात करता है वह केवल जांच दल का गठन कर ही रह जाता है। पाकिस्तान द्वारा जांच किए जाने और कार्रवाई के आश्वासन के बीच यह मामला भी अधर में लटक गया। पाकिस्तान को न तो मौलाना मसूद अजहर का पता है और न ही वह उस हाफिज़ सईद को जानता है जो आए दिन पाकिस्तान में बैठकर कभी मंच से तो कभी टीवी चैनल के स्टूडियो से उलजूलुल बयानबाजी करता है।

आखिर पाकिस्तान किस तरह का छद्म आतंकवाद प्रसारित कर रहा है। जब वह आतंकियों को अपने देश का नहीं मानता तो फिर वे किस देश के हैं। ये आतंकी भारतीय नागरिक भी नहीं हैं फिर आखिर ये कौन हैं। हो सकता है अलकायदा और अन्य आतंकी संगठनों की ही तरह अमेरिका ने ही इन लोगों में आतंक का बीज बोया होगा। मगर यह बात गले नहीं उतरती। आखिर पाकिस्तान कब तक आतंकवाद को लेकर दोहरी बात करता रहेगा। आखिर आतंकवाद का दंश वह भी झेल चुका है।

आतंकवाद के प्रभाव से उसके ही शिक्षा संस्थानों में हर दिन बुलेट की आवाज़ गूंजती है आखिर वह इसका खात्मा क्यों नहीं चाहता है। ये सवाल सभी के जेहन में कौंधता है। आखिर पाकिस्तान कब तक इतना लचर व्यवस्था वाला देश रहेगा जहां व्यवस्थाऐं सेना और आईएसआई की मुट्ठी तक केंद्रित रहती हैं और जनप्रतिनिधि और संवैधानिक पदों पर आसीन प्रमुख हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। कभी तो सबेरा होगा और असल मायने में पाकिस्तान के व्यवस्था तंत्र का तख्तापलट होगा। 

'लव गडकरी'

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