कहा जाता है कि भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हर कदम पर हर किसी में कोई न कोई प्रतिभा छुपी हुई है। यदि बात खेल की हो तो फिर कहने ही क्या। भारत ने आधुनिक दौर में सुविधाओं के अभाव के बाद भी कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभाओं को निखारा है। फिर ये प्रतिभाऐं बैडमिंटन से हों, लाॅन टेनिस से हों, हाॅकी से हों, एथलेटिक्स से हों या फिर रायफल शूटिंग और कुश्ती से भारत ने अपना दमदार असर दिखाया है। हां यह बात बेहद आश्चर्यजनक है कि भारत में जमीनी स्तर पर खेल सुविधाओं का अभाव रहता है।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खिलाडि़यों को वैसी सुविधाऐं नहीं मिल पाती हैं जैसी विदेशों में उपलब्ध होती हैं। मगर भारत के खिलाड़ी राष्ट्रमंडलीय खेलों और ओलिंपिक के खेलों में अपनी प्रतिभाओं का शानदार प्रदर्शन करते हैं। हां ग्रामीण स्तर पर खेलों की बात करें तो यहां पर खेल सुविधाऐं न के बराबर होती हैं। ग्रामीण खेल - कूद स्पर्धाओं में सुविधाऐं तो होती ही नहीं हैं। खिलाड़ी और आयोजक अपने दम पर कोई छोटा - मोटा इंतजाम कर लेते हैं। मगर आयोजन शानदार तरीके से और सुव्यवस्थित तरीके से होना मुश्किल होता है।
जिस पर खिलाडि़यों के लिए उन्नत खेल सामग्री एक बड़ा विषय होती है। खेलों के बेहतरीन और सुव्यवस्थित इंतजाम को लेकर यह बात भी सामने आती रही है कि बड़े शहर और महानगरों में इंतजाम व्यवस्थित तरीके से होते हैं इन इंतजामों का लाभ यहां की प्रतिभाओं को मिलता है। कुछ खेल तो ऐसे होते हैं जिन्हें अमीरों का शौक कहा जाता है। क्रिकेट भी इसी तरह के खेलों में शुमार है। घरेलू क्रिकेट के स्कूल मैच में खिलाड़ी प्रणव ने 1009 रन का रिकाॅर्ड बनाकर कल्याण की प्रतिभा का प्रदर्शन किया मगर यह सवाल भी गंभीरता के साथ सामने है कि आखिर मुंबई से बेहद करीब या मुंबई में ही शामिल माने जाने वाले कल्याण के खिलाड़ी ने ही इस तरह का रिकाॅर्ड क्यों बनाया।
दरअसल महानगरों में खेल सुविधाऐं और अच्छे ग्राउंड उपलब्ध हो जाते हैं। जहां ये खिलाड़ी बारीकी से अवलोकन कर सकते हैं। मगर छोटे और मध्यम शहरों के खिलाडि़यों के पास इस तरह के अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। जिसके कारण इन खिलाडि़यों को न तो कोई एक्सपोज़र मिल पाता है न ही किसी तरह के अंतर्राष्ट्रीय ग्राउंड और खिलाडि़यों का अनुभव मिलता है और न ही इन खिलाडि़यों को इतनी सुविधाऐं मिलती हैं। कई बार तो किट तक ये अपने बजट से ही खरीदते हैं वह किट जो बेहद महंगी होती है।
इसे खरीदकर वे अपने लिए सुनहरे भविष्य का सपना देखते हैं। मगर उन्हें क्या पता सुविधाओं और एक्सपोज़र के अभाव में उनका यह सपना अधूरा रह जाएगा। मनमसोसकर वे छोटी - मोटी नौकरी कर लेते हैं और रोजगार की तलाश के भटकावे में खो जाते हैं। पहलवानी में रूचि रखने वाले कई खिलाड़ी ऐसे हैं जो एकलव्य अवार्ड या अन्य राज्य स्तरीय अवार्ड जीतने के बाद भी छोटी - मोटी नौकरी तक सिमटकर रह जाते हैं। फिर पहलवानी के लिए उन्हें स्वयं की डाईट के लिए आर्थिक बोझ वहन करना पड़ता है।
ऐसे में खेल प्रतिभाओं का पुष्प खिलने से पहले ही मुरझा जाता है। ग्रामीण और स्थानीय स्तर पर खेलों की प्रतिभाओं के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे अपनी बड़े शहर की प्रतिभाओं से केवल इसलिए मुकाबला नहीं कर पाते क्योंकि उनके पास न तो एप्रोच होती है, न सुविधा और न ही एक्सपोज़र। खेल में प्रतिभा और हुनर के साथ यह बेहद मायने रखता है। जिसके कारण छोटे शहरों की प्रतिभाऐं पीछे रह जाती हैं।
'लव गडकरी'