धरती के स्वर्ग में लगी नफरत की ये कैसी आग!
धरती के स्वर्ग में लगी नफरत की ये कैसी आग!
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ग़र फिरदौस बर - रूऐ जमीं अस्त.. हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त।। जी हां जितनी खूबसूरती से भारत के अभिन्न व महत्वपूर्ण राज्य जम्मू - कश्मीर के लिए ये पंक्तियां कही गईं है। उससे कहीं ज़्यादा रमणीय है जम्मू - कश्मीर राज्य। जी हां, जम्मू - कश्मीर राज्य को यूं ही धरती का स्वर्ग नहीं कहते हैं। ऊॅंचे - ऊॅंच पहाड़, पहाड़ों पर छाई हरियाली और बर्फ के ही साथ इन पहाड़ों की ओर जाते सर्पिलाकार रास्ते बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींचते हैं। अरे हां, कश्मीर की शान की एक बात तो रह ही गई। क्या आपने शिकारा नाम सुना है।

जी हां, अब तो यह देखना भी दुर्लभ हो गया है लेकन पानी पर बहते शिकारे बहुत ही सुंदर लगते हैं। इतना ही सुंदर है यहां के लोगों का जनजीवन। सेब के बागीचे और केसर की आवक के लिए यह राज्य जाना जाता है यहां की शाॅल और शाॅल पर की गई कलाकारी भी बहुत लुभाती है मगर अब यह सब कम ही देखने को मिलता है। अब तो हर ओर केवल बारूद की गंध बिखरी होती है तो बर्फ की ठंडक से नफरत की आग रह रहकर उठती है।

हाल के ही दिनों को लीजिए। हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया तो चंद भटकी हुई कश्मीरी अवाम ने उसे शहीद का दर्जा दे दिया। वानी की मौत का गम इतना भारी था कि उसके पीछे 200 जिंदगियां खतरे में डाल दी गईं और महज 200 नहीं पूरे राज्य को ही नफरत की आग में झोंक दिया गया। एक पुलिसकर्मी को लोगों ने उसके वाहन समेत नदी में धकेल दिया।

लोगों का आक्रोश इतने पर ही शांत नहीं हुआ। बंद, प्रदर्शन, पथराव, आगजनी सभी कुछ तो हुआ इस राज्य में। दरअसल इस आतंकी वानी ने पहली बार सोश्यल मीडिया में अपने फोटो पोस्ट किए थे। जिसके बाद भारत के प्रति असंतुष्ट और पाकिस्तानी विचारधारा की ओर झुकाव रखने वालों के बीच यह तेजी से लोकप्रिय हुआ। इसकी मौत को शहादत का रंग देने के लिए अलगाव के कई प्रदर्शन हुए।

इन प्रदर्शनों से जम्मू - कश्मीर राज्य तो झुलस ही गया साथ ही देश के वातावरण पर भी इसका खासा असर हुआ है। आखिर कश्मीर में कब हालात सामान्य होंगे। आखिर कब बमों, बंदूकों की थर्राहट बंद होगी। आखिर कब यहां का कश्मीरी अवाम देश के आम नागरिक की तरह प्रगति के पथ पर कंधे से कंधा मिलाकर चल सकेगा। आखिर कब यह धारणा प्रबल होगी कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था और सदैव रहेगा।

घाटी में अलगाव की आग कब समाप्त होगी। आखिर कब हर जुमे की नमाज़ के बाद पाकिस्तान और आतंकी संगठन आईएसआईएस समर्थित ध्वज फहराने बंद किए जाऐंगे और आखिर कब घाटी में कश्मीरी पंडित और आम कश्मीरी एक साथ रह सकेंगे। ये ऐसे चुभते सवाल हैं जिनके जवाब मिल पाना काफी मुश्किल लगता है। मगर असल मायनों में इनके जवाब आवश्यक भी हैं। वह कश्मीर जहां के लोग बरसों से पाकिस्तान प्रेरित इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त रहे हैं वे यह मान रहे थे कि केंद्र में और राज्य में भाजपा नेतृत्व की सरकार आने के बाद शांति बहाली हो सकेगी लेकिन राज्य के हालातों को लेकर भाजपा को जैसे सांप ही सूंघ गया।

केंद्र सरकार प्रारंभ से ही कश्मीर में उपजे अलगावा को रोकने में कमजोर लग रही थी। जम्मू - कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनने के बाद तो जैसे कश्मीर में शांति बहाली केवल एक ख्वाब मात्र बनकर रह गया। जो संगठन धारा 370 पर दम मारा करता था वह अलगाववादी नेता मसर्रत आलम के साथ पकड़म पाटी का खेल खेलने लगा। सरकार इस अलगाववादी नेता को पकड़ती, नज़र बंद करती और छोड़ देती।

धीरे - धीरे कश्मीर में भारत विरोधी प्रदर्शन बढ़ते रहे मगर केंद्र सरकार हर बार बयानबाजी तक सीमित रही। हालांकि केंद्र सरकार ने अपने स्तर पर व्यापक प्रयास किए। केंद्र सरकार ने अलगावादियों पर नकेल कसी लेकिन गठबंधन की राजनीति सदैव उस पर हावी रही। नतीजतन जम्मू - कश्मीर में आतंकवाद का असर बढ़ता चला गया। हर बार सुरक्षा दस्ता आतंकियों से मुठभेड़ करता और उन्हें खदेड़ देता लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान नज़र नहीं आया। ताज़ा स्थिति में हिजबुल के कमांडर बुराहान वानी को एनकाउंटर में मार दिया गया और फिर अलगाव फैल गया।

घाटी में हिंसा भड़क उठी। बुरहान को चाहने वाले उसके एनकाउंटर का विरोध करते रहे। ऐसे में सरकार पर हर तरह से दबाव बना। एक ओर जहां घुसपैठ बढ़ गई वहीं आतंरिक हालात कमजोर हो गए। हालांकि इन सभी में अकेली सरकार की कहां गलती थी। पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान ताक लगाए बैठा था कि उसे एक मौका मिल जाए बस। उसने मौके को भुनाया और हिंदुस्तान पर लपक गया। हिंदुस्तान में उपजी इस वैमनस्य की चिंगारी में उसने नफरत का घी डाल दिया और फिर आग भड़क उठी। हालांकि यहां सुरक्षा बलों द्वारा बेवजह सख्त कार्रवाई करने की बात उस वर्ग द्वारा की जा रही है जो कि असंतुष्ट है।

यह वर्ग अपना गुस्सा लेकर सड़को पर उतर आया है लेकिन वह यह भूल गया है कि इस तरह से हालात और बिगड़ेंगे और परेशानी उसे ही होगी। जिस मसले को शांति के माध्यम से हल किया जा सकता है उसके लिए सारे देश में आग लगाना ठीक नहीं है। मगर घाटी में त्वरित शांति की बात नज़र नहीं आ रही है। केंद्र सरकार को पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद का स्थायी समाधान खोजना होगा क्योंकि आतंक का यह शैतान कभी जम्मू - कश्मीर को तो कभी पंजाब को अस्थिर करने में लगा है।

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