मन की बात : 'जल तो परमात्मा का प्रसाद है'
मन की बात : 'जल तो परमात्मा का प्रसाद है'
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कल रेडियों पर प्रधानमंत्री जी की मन की बात सुनी तो मुझे भी लगा कि मुझे भी अपनी मन की बात प्रधान मंत्री से करना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने जल को ‘‘परमात्मा का प्रसाद’’ बताया इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हुँ। मैं प्रधनमंत्री जी से यह जानना चहाती है कि परमात्मा इस दुनिया के सभी मनु-ुनवजीवियों, जीव, जन्तुओं के साथ भेद भाव नही करता सब बराबरी से देता है। जीवन को जीने के लिए जितने प्राकृतिक संसाधन है उन पर भी बराबरी का कह देता है और जिस समाज ने प्रकृति संसाधनों को सुरक्षित रखा है। उन्हें उस समाज के नाम से पहचाना जाने लगा जैसे दूर दराज जंगल में निवास करने वालों को आदिवासी समाज के नाम से पहचाना जाने लगा, क्योकि आदिवासी जंगल में निवास करता था।

अतः उसने जंगल को ही अपना देवता माना, जीविका उपार्जन का साधन भी उसने वन उपज को माना तथा स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए उसने जड़ी बूटियो की खोज की। बीमार पड़ने पर, हड्डी टूटने पर या शरीर के अंग कट जाने पर उसने कभी अस्पाताल या चिकित्सक का सहारा नही लिया, उसने जड़ी बूटियों से अपना तथा समाज का इलाज करवाया। जंगल को उसने भागवान माना अपने शारीर का एक अंग माना आज देश में कानून बनाकर आदिवासीयों को जंगल से बेदखल किया जा रहा है। उसी प्रकार नदी पर मछुवारे (केवट) का अधिकार था जल ही उसका जीवन था आज केवट को भी नदी से बाहर खदेड़ दिया गया है। नदियों पर रेत माफिया का कब्जा है। नदी में रेत रहने पर ही जल स्तर बढ़ता है। क्या आप रेत माफिया के खिलाफ या प्रकृति संसधनों की लूट करने वालों के खिलाफ कार्यवाई करेंगे? मैं पूछना चहाती हुँ प्रधानमंत्री जी जंगल की सुरक्षा करने वाले आदिवासी को आखिर कानून बनाकर जंगल से बाहर क्यों खदेड़ दिया ? नतीजा देखिए, हमारे जंगल वन माफिया के हवाले करने के कारण वृक्ष विहीन जंगल पहाड़ी बन गए।

अब पहाड़ीयों को खनन माफिया नष्ट कर रहे है, ये पहाड़ियाँ हमारी गरम हवाओं, ठड़ी हवाओं से हमें बचाती थी। खनन माफिया हमारे जंगल एवं पहाड़ों से तात्कालिक लाभ लेकर पूरे समाज को असहनीय पीड़ा (गरमी तथा ठंड, सूखा तथा अतिवृ-ुनवजयट) की पीड़ा देने वालों के खिलाफ कोई कानून आप इस देश में बनाएगे क्या ? प्राकृतिक सम्पदा की लूट करने वालों को कभी जेल भिजवायेंगे क्या? प्रधानमंत्री सड़क योजना जो बनाई गई उसमें टेकड़िया काटकर उसमें पत्थर तथा मुरम का उपयोग सड़क बनने में किया गया, उनसे कोई रॉयल्टी भी नही ली गई ऐसे खनिज विभाग के अधिकारियों पर आप कार्यवाही करने का निर्देश जारी करेंगे क्या ? कश्मीर से कन्याकुमारी तक फोर लेन, सिक्स लेन, ऐट लेन का निर्माण किया गया। सड़क के किनारे लगे फलदार वृक्ष जो कि रहागीरों को छाया देते थे तथा वे गरीब जो फल खरीद कर नही खा सकते थे। उन फलों पर समाज का हक था वे फलदार वृक्ष काट दिये गये उनके बदले फलदार वृक्ष लगाने का आप निर्देश जारी करायेंगे क्या?

मैं या हम समाजवादी विकास विरोधी नही है हम भी चहाते है देश और दुनिया में हम भारतीयों का सर्वोच्च स्थान रहें लेकिन विकास किसके लिए और किन शर्तों पर, यह हमें समझना होगा। विदेश में सड़के बनाई जाती है इसके पूर्व वृक्षों को निकालकर उन्हें दूसरे स्थान पर रोपित किया जाता है, जिससे पेड़ जिन्दा रहता है। पर्यावरण एवं समाज को भी कोई नुकसानी नही होती अगर देश में समाजवादियों की सरकार होती तो पहले पेड़ों को अन्य जगह रोपित किये जाते फिर फोर लेन, सिक्स लेन, ऐट लेन की सड़क बनाई जाती मेरे कहने का आशय यह है कि समाजवाद और पूंजीवाद में जो फर्क है कि समाजवादी तुरन्त लाभ लेने की नही सोचते पहले योजना बनाते जिस चीज को हटाना है या तोड़ना है उसके पहले उसके पुर्नवास की व्यवस्था करते फिर उसको तोड़ते, पूंजीवाद में तुरन्त का लाभ लेने की जो प्रवृत्ति है वह समाज के लिए हनिकारक है यही नतीजा है कि आज देश के सामने जल संकट खड़ा है प्रधानमंत्री जी मैं आप से पूछना चाहती हूँ कि सबसे जादा पानी की खपत शराब बनाने में की जा रही है, जबकि लोग जल संकट से जूझ रहे है एक-एक बून्द पानी के लिए तरस रहे हैं।

मराठवाड़ा (लातूर ) मे ट्रेन से पानी पहुँचाया जा रहा है उसके बाद भी शराब की फैक्ट्री मे पानी पहुँचाने में कोई रोक नही लगी है। आम नागरिक जनहित याचिका दायर करके न्यायलय से यह कोशिश अवश्य कर रहे है कि शराब फैक्ट्री में पानी न दिया जाये। जब चुने हुए प्रतिनिधि जनता की आवाज नही सुनते तो मजबूर होकर जनता को न्यायपालिका की शरण लेनी होती है। मैं आप से पूछना चहाती हुँ कि फिर न्यायपालिका और विधायिका के बीच अधिकारों को लेकर लड़ाई क्यों शुरू हो जाती है और चुनी हुई सरकार न्यायपालिका पर यह आरोप क्यों लगाने लगती है कि न्यायपालिका विधायिका के कार्यक्षेत्र में दखल क्यों दे रही है। आशा है आप मेरी मन की बात को समझकर इस पर आगे विचार अवश्य करेगे।

आराधरा भार्गव

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