अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: जीवन का आवश्यक पहलू है महिला - पुरूष समानता
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: जीवन का आवश्यक पहलू है महिला - पुरूष समानता
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महिलाओं के संरक्षण और उनके अधिकारों पर इस दिन हर कहीं चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि पुरूषवादी सोच को बदलने की आवश्यकता है लेकिन क्या वाकई में ऐसा है क्या हर जगह महिलाओं का शोषण हो रहा है। क्या महिलाओं पर वाकई में पुरूषवादी सोच ही हावी है। क्या महिलाओं को अधिकार मिलने के बाद इनके हित में कार्य होने लगे हैं। क्या महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उठने वाले शोर - शराबे के बाद इनके प्रति होने वाले अपराध कम हुए हैं। इन सभी पर विचार करने की आवश्यकता है। यदि हम इन बातों पर विचार करते हैं तो ऐसा लगता है कि इंटरनेशनल वूमन्स डे पर कोलाहल अधिक मचता है।

हम महिलाओं की शक्ति का दम भरते हैं और मलाईदार कवर से समाज के काले आवरण को ढंक देते हैं। जी हां, सबसे बड़ी बात यह है कि स्त्री और पुरूष जीवन के उस वाहन की तरह है जिसके सारे ही पुर्जे उतने ही आवश्यक हैं जितना कि एक पुर्जा जरूरी है। इसे किसी साइकिल में प्रयुक्त होने वाले दोनों पहियों की तरह भी देखा जा सकता है। यदि एक ही पहिया हो तो साइकिल नहीं दौड़ सकेगी। ऐसे में स्त्री और पुरूष के बीच भी सामंजस्य आवश्यक है। बराबरी दोनों की ही है न कोई किसी से कम है न कोई किसी से आगे है। समाज में स्त्रियों को मिलने वाले अधिकारों की बात तो कर दी जाती है लेकिन जब उनके अधिकार मिल जाते हैं तो स्त्रियां उनका गलत उपयोग करने लगती हैं।

एक समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित हुआ था एक विवाहिता ने अपनी सास, पति और ससुराल पक्ष पर दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का आरोप लगा दिया। जब वास्तविकता सामने आई तो सभी आश्चर्य में पड़ गए। दरअसल उस विवाहिता को उसके बाॅयफ्रेंड से मेल - मुलाकात रखने के लिए मना कर दिया गया था उस पर आपत्ति ली गई थी जिसके कारण महिला ने अपने ससुराल पक्ष वालों पर इस तरह का आरोप लगाया था।

हां मगर कुछ महिलाऐं आज भी ऐसी हैं जो काम पर जाती हैं और जब शाम को घर लौटती हैं तो उनके पति शराब की लत के लिए उनसे पैसों की मांग करते हैं। जब ये महिलाऐं पैसे नहीं देती हैं तो उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। यहां पर ये दोनों ही उदाहरण महिलाओं की स्थिति को बयां कर देते हैं। वास्तविक पीडि़ता तक अधिकारों का लाभ नहीं पहुंच रहा है और जो अधिकारों के प्रति जागरूक है वह इसका गलत लाभ ले रही है। ऐसे में पारिवारिक संबंध अलगाव की स्थिति में होते हैं और फिर संबंध विच्छेद होने से समाज पर इसका विपरीत असर पड़ता है। 

यही हालात महिलाओं से जुड़े अपराधों को लेकर भी हैं। बलात्कारी को फांसी दो, बलात्कारी को फांसी दो जैसे संदेश लिखकर लोग कई बार सड़कों पर निकलते हैं। जब दिल्ली या किसी मैट्रो में यह वारदात होती है तो लोग मार्च निकालने लगते हैं मगर जब किसी गांव में बस में सवार महिला के साथ बलात्कार हो जाता है और इस घटना में उसका 14 माह का बच्चा मौत की आगोश में चला जाता है तो लोग कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते हैं। महिला अधिकारों को लेकर वही वर्ग विभिन्न बातों और अधिकारों का लाभ ले रहा है जिसे इसकी आवश्यकता नहीं है।

ऐसे में महिलाऐं अपने अधिकार जताकर समाज में मनमाना आचरण करती हैं। ऐसे में समाज में बिखराव और अलगाव की बातें देखने को मिलती हैं। छेड़छाड़ आदि कई ऐसे घटनाक्रम में कई बार तो यह बात भी सामने आई कि उक्त घटनाक्रम हुए ही नहीं लेकिन कथिततौर पर मर्दानियां सामने आकर वाह- वाही लूटने लगीं और इस तरह से आंख के बदले आंख लेने की बदले की प्रवृत्ति समाज में बनती चली गई। ऐसे कई मामले हैं जिनमें महिलाऐं अपने अधिकारों का डर दिखाती हैं।

कई बार तो यह भी देखने में आया कि महिलाऐं परिवार में अपने बड़े - बुजुर्गों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करती। एक महिला ही एक महिला के प्रति रूखा व्यवहार करती है वह भी केवल इसलिए कि उसे महिला से संबंधित अधिकार मिल गए हैं आखिर यह किस तरह की समानता है आखिर इससे परिवार और समाज पर क्या असर पड़ेगा इस पर विचार होना अधिक आवश्यक लगता है। 

'लव गडकरी'

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