भारत और पाकिस्तान हमेशा से आपसी रिश्तों को लेकर विश्व के राजनीतिक पटल पर छाए रहे हैं। इन देशों के बीच उपजा सीमा विवाद है। कुछ गंभीर लेकिन अब यह सीमा विवाद आतंकवाद के विवाद में बदल गया है। भारत वर्षों से पाकिस्तान को पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद रोकने के लिए कहता है और पाकिस्तान हर बार आश्वासन की घुट्टी दे देता है। हां मगर जब - जब पाकिस्तान और भारत के सियासतदार सौहार्दपूर्ण चर्चा को लेकर आपस में मिले तब - तब आतंक का साया सुधरते रिश्तों पर मंडराता रहा।
भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों में केवल राजनीतिक प्रयास ही नाकाफी साबित होते हैं ऐसा नहीं है। दरअसल पाकिस्तान की राजनीतिक उथल - पुथल दोनों देशों के रिश्तों को प्रभावित करती है। जब भी कभी भारत दोनों देशों के रिश्तों को सुधारने की पहल करता है पाकिस्तान में इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई के अधिकारी और सेना के अधिकारी इस तरह की पहल को असफल कर देती हैं। भारत के प्रयासों पर पानी फिर जाता है और भारत की सीमा में घुसपैठ की नई कोशिशें होती रहती हैं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब लाहौर बस यात्रा का शुभारंभ किया तो इसके बाद पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की बड़ी वारदात हुई। जिसके बाद भारत को टाईगर हिल पर एक बड़ी लड़ाई लड़ना पड़ी। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ द्वारा आगरा शिखर वार्ता में भागीदारी करने के बाद पाकिस्तान की राजनीति में उथल - पुथल मच गया।
अब गुरदासपुर के बाद नववर्ष 2016 में आतंकियों ने पठानकोट का नया रास्ता अख्तियार किया। पाकिस्तान की सीमा से करीब 30 किलोमीटर दूर पठानकोट के एयरफोर्स स्टेशन पर आतंकियों ने हमला किया तो देशभर में अलर्ट जारी कर दिया गया। इसी के साथ शुरू हो गई पाकिस्तान और भारत के बीच रिश्तों की कोशिशों पर चर्चा।
दरअसल यह हमला ऐसे समय हुआ जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को उनके जन्मदिवस पर मिलने गए थे। माना जा रहा है कि आतंकियों की ओर से दोनों ही देशों के सुधरते रिश्तों को प्रभावित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। मगर यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि जम्मू - कश्मीर में भी आतंकी सर्द मौसम की शुरूआत के पहले ही घुसपैठ की साजिशें करते रहे लेकिन भारत के जांबाज सैनिकों ने उनकी इन साजिशों को नाकाम कर दिया।
पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादियों ने एक बार फिर पंजाब का रास्ता चुना है। ऐसे में आतंकवादियों द्वारा किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की संभावनाऐं प्रबल हो रही हैं। हालांकि सुरक्षा बलों ने हमले को नाकाम कर दिया। मगर इस हमले से यह बात साफ हो गई कि कंधार विमान अपहरण कांड के बदले आतंकी मौलाना मसूद अजहर को छोड़ना भारत को भारी पड़ा। इस बात के संकेत मिले हैं कि इस हमले की साजिश रचने वाला मसूद अजहर आतंकी था।जिसके इशारों पर आतंकियों ने अपनी गतिविधियों को अंजाम दिया।
इस हमले के बाद भी पाकिस्तान से आतंकियों के तार होने के सबूत मिले हैं। मगर इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हर हमले के बाद भारत केवल सबूत जुटाटा रहेगा और क्या हर अंतर्राष्ट्रीय वार्ता के दौरान भारत आतंकवादियों के खिलाफ डोजियार ही प्रस्तुत करता रहेगा। हालांकि भारत की मजबूरी भी यही है कि आतंकवाद के खिलाफ फिलहाल सीधी लड़ाई पाकिस्तान से लड़ी नहीं जा सकती है। विशेषज्ञ भी दोनों देशों के बीच वार्ता को ही एकमात्र विकल्प बता रहे हैं।
शांति के दूत भारत के लिए यह कदम वाजिब भी माना जा सकता है क्योंकि अल कायदा के नेटवर्क को समाप्त करने के लिए अमेरिका को अपनी आर्थिक गतिविधियों से समझौता करना पड़ा है। हां लेकिन इस तरह के हमलों में शहीद होने वाले जवानों की शहादत का मूल्य भी नहीं आंका जा सकता क्योंकि शहादत सदैव अनमोल रही है।