कभी बिन पानी तो कभी पानी-पानी से मचती त्राहि-त्राहि !
कभी बिन पानी तो कभी पानी-पानी से मचती त्राहि-त्राहि !
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प्रतिवर्ष देश में बारिश के मौसम में अतिवृष्टि का दौर होता है। देश के किसी न किसी क्षेत्र में बाढ़ की परेशानी होती है लेकिन इस बार बड़े पैमाने पर देशभर में बाढ़ का कहर बरपा। बाढ़ के हालातों ने आपदा प्रबंधन पर ध्यान दिलवाया तो उन क्षेत्रों की ओर भी ध्यान गया जो अब तक सूखाग्रस्त थे। बारिश से कई जगह पर जलप्लावन के हालात बने। उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई राज्य ऐसे थे जहां के क्षेत्रों में बाढ़ का कहर बरपा। हालांकि बाढ़ की स्थिति में आपदा प्रबंधन में लगे दल ने लोगों की जान बचाई लेकिन बारिश के मौसम में आने वाली इस आपदा के लिए आपदा प्रबंधन काफी कमजोर नजर आया।

बाढ़ से हालात बेहाल हो गए। मगर ऐसे में एक बात जरूर सामने आती है कि बड़े पैमाने पर धरातल पर जलराशि एकत्रित हुई और बहकर निकल गई। बारिश के इस पानी को, जबकि कई क्षेत्रों में बाढ़ के हालात बने। कुछ मात्रा में तो सहेजा ही जा सकता था। मगर इन क्षेत्रों में जल स्तर बढ़ने के साथ बारिश थमने पर उतनी ही तेजी से जलस्तर कम भी हो गया। ऐसी परिस्थितियों में जब जल सहेजने की आवश्यकता हो तो नदी जोड़ो योजना की याद आती है।

जी हां, नदियों से नदियों को जोड़ने की यह योजना बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस योजना से उन क्षेत्रों में बाढ़ के कहर को कम किया जा सकता था जहां जिंदगी पानी में डूबी हुई थी और उस धरती को तर किया जा सकता था जहां अब तक सूखे से बड़ी-बड़ी दरारें हो गई थीं। अभी भी कई क्षेत्रों में खेतों में पानी भर गया है और बोवनी के बाद किसान पानी से भरे खेतों के खाली होने का प्रयास कर रहे हैं। हर वर्ष देश में होने वाले वर्षा के इस असमान वितरण को प्रबंधित किया जा सकता है। जिस तरह से बरिश के दौर में धरातल जलमग्न हो जाता है और फिर सर्दियों के अंतिम दौर में जलस्त्रोत सूखने लगते हैं यह एक गंभीर विषय है।

इसके लिए उपाय किए जाने जरूरी हैं। जहां जल का अति दोहन होता है तो दूसरी ओर जल संग्रहण, जलभंडारण और जल संधारण उपयुक्त तरह से नहीं हो पाता है। जिसके कारण एक बड़ी जलराशि यूं ही बर्बाद हो जाती है। आसमान से बरसा जल भू गर्भ तक तो बमुश्किल ही पहुंच पाता है। मगर इसके संग्रहण में भी विशेष दिलचस्पी नहीं ली जाती है जिसके कारण भू-गर्भ का जल भी कम हो रहा है।

बारिश का पानी नदी, नाले उफनने से शहरी क्षेत्रों में पहुंचता है और बाढ़ की स्थिति बनती है। यह पान कुछ ही समय में बहकर निकल जाता है। ऐसे में फिर हालात जस के तस हो जाते हैं फिर किसी न किसी राज्य में सूखे से हाल बेहाल होते हैं। इन स्थितियों का सामना करने के लिए जल को भूमिगत करना, खेतों में कुछ क्षेत्र में तालाबों का निर्माण करना और नदियों को नदियों से जोड़ने के उपाय करना उचित हैं। यदि इस तरह के उपाय किए जाते हैं तो फिर जलराशि का प्रबंधन सही तरह से किया जा सकता है।

'लव गडकरी'

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