बैर कराते मंदिर मस्जिद मेल कराती मधुशाला!
बैर कराते मंदिर मस्जिद मेल कराती मधुशाला!
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आपने लोकप्रिय कवि स्व. हरिवंश राय बच्चन की अमर कथा मधुशाला जरूर पढ़ी या सुनी होगी। इस कविता की कुछ पंक्तियां थीं। बैर कराते मंदिर - मस्जिद मेल कराती मधुशाला जी हां, । देश में जिस तरह के हालात आज राजनीतिकरूप से फैलाऐं जा रहे हैं। उनमें ये पंक्तियां सार्थक होती नज़र आ रही हैं। जी हां, दादरी कांड के पहले से ही देशभर में सांप्रदायिकता की आग लगाने की कोशिशें की जा रही हैं। कभी बीफ मसले को बेवहज उछाला जा रहा है तो कभी पैगंबर हजर मुहम्मद कौन सी सदी में क्या बोलकर गए थे। इसे बेवजह तूल दिया जा रहा है।

बीफ मसले पर दोनों ही ओर से चिंगारी को हवा दी जा रही है। बिना कारण देश को सांप्रदायिकता की गर्माहट से झुलसाने का प्रयास किया जा रहा है। मगर इन सभी से बाहर आकर देश को नए पथ पर ले जाने की जरूरत है। वह अयोध्या जहां के मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए फूल चुनने का कार्य मुस्लिम परिवार के सदस्य करते हैं। वहां पर श्री राम मंदिर के निर्माण को आवश्यकता से अधिक तूल देकर देशभर का माहौल खराब करने का प्रयास किया जा रहा है।

दूसरी ओर मुसलमानों के पैरोकार कहे जाने वाले नेता भी अपनी ओर से कई तरह के विवादों को तूल दे रहे हैं। संगठन विशेष को आतंकवादी बताकर यूएन के हस्तक्षेप की बात कर वे जताना चाहते हैं कि यह देश वर्ग विशेष के लोगों के रहने लायक नहीं रहा।

यह देश की संप्रभुता पर हमला भी कहा जा सकता है। इस तरह की बातों से राष्ट्र का माहौल खराब हो रहा है। जिस देश को 21 वीं सदी में एशिया में सबसे आगे ले जाए जाने की बातें कही जा रही हैं। जिस देश के शहरों को शंघाई, दुबई और ब्रिटेन के शहरों जैसा बनाए जाने और हाईस्पीड ट्रेनों का नेटवर्क बिछाए जाने के वायदे किए जा रहे हैं उस देश की जनता को राम और रहीम के नाम पर लड़ाया जा रहा है।

राजनीति में कुर्सी की खींचतान ऐसी है कि विपक्ष सत्ता विरोधी लहर लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है तो पक्ष महंगाई, बेरोजगारी, पिछड़े क्षेत्रों के विकास की समस्याओं से लोगों का ध्यान हटा रहा है। हालांकि आम आदमी अभी भी अमन - चैन और विकास की आस लगाए हुए है मगर नेताओं द्वारा राम मंदिर के लिए बलिदान मांगने की बातें करने और अल्पसंख्कों के असुरक्षित होने की बात करने से हालात बिगाड़ रहे हैं।

अब लोग यह तक भूल चुके हैं कि यह वह देश हैं जहां राम प्रसाद बिस्मील और अशफाक उल्ला खान ने साथ संघर्ष कर अंग्रेजों की मुश्किल बढ़ा दी थी। अब तो लोगों को महामना पं. मदन मोहन मालवीय से भी कोई सरोकार नहीं रहा। ऐसे में देश में वैमनस्य फैलना स्वाभाविक नज़र आता है। मगर लोगों को अभी भी मधुशाला से आस है। जी हां, मधुशाला। जिसके प्याले में अपनत्व, एकत्रिकरण और प्रेम का भाव हो। वह मधुशाला जो लोगों के दिलों में सौहार्द की मिठास घोलती हो। 

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