दशहरा, अर्थात वो दिन जिस दिन श्री राम ने रावण का वध किया था और ब्रह्माण्ड को अत्याचार और आतंक से मुक्त किया था। इसके पीछे की कथा तो हम सब जानते ही हैं किस तरह रावण ने सीता का अपहरण कर उन्हें बंदी बना लिया था। रावण ने जो भी बुरा किया था उसे सब जानते हैं लेकिन जैसे हर चीज़ के दो पहलु होते हैं वैसे ही रावण का भी था। उसके कुकर्म सभी के समक्ष हैं लेकिन उसके सुकर्म जिसके बारे में शायद ही कोई जानता होगा या बहुत कम लोग जानते हैं। जैसा की हम सब जानते हमारे देश में श्रीराम की विजय पर विजया-दशमी मनाई जाती है। रावण अपने परिणाम से पहले ही परिचित था कि उसका उद्दार श्री राम के हाथो के ही होना है। ये जानते हुए भी उसने इतना बड़ा पाप किया।
आपको ज्ञात हो तो, रावण भगवान् शिव का सबसे बड़ा भक्त हुआ करता था, उससे बड़ा भक्त शायद ही कोई रहा होगा। रावण बहुत बड़ा विद्वान् हुआ करता था जो विद्या उसने भगवान् शिव की आराधना करके प्राप्त हुई थी। आपको ये भी बता दे कि रावण की बहन सूर्पनखा जो कि यही चाहती थी ,जिसने उसके पति का वध किया हो उसे उसका दंड मिले। रावण के वध के पीछे कहीं ना कहीं उसकी बहन का भी हस्तक्षेप था।
जिस तरह हमारे देश में विजयादशमी के दिन रावण के पुतले का दहन किया जाता है ,वहीँ लंका में उसकी पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त लंका में उसका एक भव्य मंदिर भी है। लंका के अलावा रावण की पूजा मंदसौर में भी की जाती है। माना जाता है कि मंदसौर में मंदोदरी का निवास स्थान है। भारत में एक मात्र यही स्थान है जहाँ रावण का दहन नही किया जाता। इसी के साथ जैन धर्म के लोग भी रावण दहन का बहिष्कार करते हैं क्योंकि ये उनके होने वाले अगले तीर्थंकर थे।
जिस तरह रावण राज में आतंक हुआ करता था उसी तरह आज पुरे संसार में आतंक छाया हुआ है आतंक आज भी जीवित है ,आखिर कैसे कह दे कि रावण मारा गया। आज संसार को भी एकजुट होने की आवश्यकता है जिस प्रकार श्री राम,वानर-राज बाली और हनुमान इसके विरुद्ध एकत्र हुए थे। क्या आप कह सकते हैं आज हमारे समाज में नारी सुरक्षित है। क्या कन्याओ की भ्रूण हत्याओ का पाप रोक दिया गया है ? तो क्या हम ये मान ले कि रावण मारा गया ?
नही ,वो आज भी कई बुराइयों के रूप में जीवित है। हमारे भीतर क्रोध के रूप में,अहंकार के रूप में आज भी जीवित है। यदि यही सब है तो महज़ एक पुतले का दहन करने का क्या लाभ ? हम क्यों मान लेते है कि बुराई पर अच्छाई की जीत हो गई है। अपने भीतर के रावण का अंत करने के लिए आवश्यक है हमारी नकारात्मक शक्तियों का अंत करना होगा।
श्री राम भी एक प्रतीक हैं ,रावण भी एक प्रतीक है। आज राम भी जीवित है,रावण भी जीवित है और हनुमान भी जीवित है लेकिन फिर भी ना जाने क्यों राम जीत नही पा रहे हैं।
पाप पर आवरण डालने के लिए चाहे कितनी भी शिव भक्ति की जाए किन्तु यदि कर्म बुरे हैं तो स्वयं भगवान् शिव भी आपकी सहायता नही कर सकते। सही मायनो में दशहरा तभी मनाया जा सकता है जब आज की बुराइयो को समाप्त किया जाए। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार,आतंकवाद आदि को समाप्त करना होगा तभी हम बोल सकेंगे कि आज बुराई पर अच्छाई की जीत हुई है। उसी दिन हम दशहरा सही मायनो में मना सकेंगे। अन्यथा आज हम सिर्फ एक परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं और उसी का निर्वहन कर रहे हैं।
अंत में सिर्फ यही कहना चाहूंगी ,यही होगा ''दशहरा, मेरी नज़र में '' .