बाबा आमटे की जयंती आज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें
बाबा आमटे की जयंती आज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें
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नई दिल्ली: आज यानी 26 जनवरी को डॉ मुरलीधर देवीदास आमटे की जयंती है, जिन्हे बाबा आमटे के नाम से अधिक जाना जाता है, वे भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे। समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिये उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें चन्द्रपुर, महाराष्ट्र स्थित आनंदवन का नाम प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त आमटे ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों, जिनमें वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख हैं, के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। 

एक दिन बाबा ने एक कोढ़ी को धुआँधार बारिश में भीगते हुए देखा उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। उन्होंने सोचा कि यदि इसकी जगह मैं होता तो क्या होता? बाबा ने फ़ौरन उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए। इसके बाद बाबा आमटे ने कुष्ठ रोग को जानने और समझने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया। उन्होंने वरोडा (जि. चंद्रपूर, महाराष्ट्र) पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ आनंद वन की स्थापना की। यही आनंद वन, आज बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है। मिट्टी की सौंधी महक से आत्मीय रिश्ता रखने वाले बाबा आमटे ने चंद्रपुर जिले, महाराष्ट्र के वरोडा के निकट आनंदवन नामक अपने इस आश्रम को आधी सदी से अधिक समय तक विकास के विलक्षण प्रयोगों की कर्मभूमि बनाए रखा। जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की। 

धीरे-धीरे, आनन्दवन की महत्ता चारों ओर फैलने लगी, नए-नए रोगी आने लगे और "आनन्दवन" का महामंत्र 'श्रम ही है श्रीराम हमारा' सर्वत्र गूँजने लगा। आज "आनन्दवन" में स्वस्थ, आनन्दमयी और कर्मयोगियों की एक बस्ती बस गई है। भीख माँगनेवाले हाथ श्रम करके पसीने की कमाई उपजाने लगे हैं। किसी समय 14 रुपये में शुरु हुआ "आनन्दवन" का बजट आज करोड़ों में है। आज 180 हेक्टेयर जमीन पर फैला "आनन्दवन" अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है। बाबा आम्टे ने "आनन्दवन" के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है। 9 फ़रवरी 2008 को बाबा का 94 साल की आयु में चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में निधन हो गया।

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