दीपोत्सव पर विशेष - नभ दुन्दुभी बाजहिं विपुल गंधर्व किन्नर गावहीं
दीपोत्सव पर विशेष - नभ दुन्दुभी बाजहिं विपुल गंधर्व किन्नर गावहीं
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भारतीय साहित्य, इतिहास, कला और संस्कृति के दर्पण में भारत के पर्व और त्योहार मुखरित है। यहां का हर पर्व जनमन से जुड़ा हुआ है। इनके आनंद तथा उत्साह का क्या कहना। यथार्थ में त्योहारों और पर्वों की प्रकृति सदैव नदी धारा की प्रकृति होती है, जो सतत प्रवाहमान रहती है। हमारे जीवन में जिनके अर्थ भी व्यापक है तथा मनोभाव से जिनका तादात्म्य होने से गहरी आस्थावों व श्रद्धा भाव से जुड़े हुये है। चिंतन की सीमा में हम बड़ी सफलता से यूं कह सकते है कि त्योहार एक धार्मिक अनुष्ठान की सर्जना करते हुये हमारे जन जीवन में आस्था, विश्वास और श्रद्धा के भाव प्रकट करते है।

त्योहार मानवीय जीवन में उत्साह का संचार करते हुये मनुष्य में आनंद की अनुभूति देते है। किंतु यदि मालवा की बात करें तो यहां यह विशेषता है कि यहां का हर व्रत उत्साह है और उत्सव त्योहार बन जाता है, त्योहार न केवल पर्व, बल्कि महापर्व तक बन जाते है। होली हो या दीवाली या हो ईद, भारत में हर त्योहारों का अपना एक रंग है।

जीवन के हर सुख, दुःख में इस रस की धारा कभी सूखती नहीं है और इसनमें विविधता में एकता के भी दर्शन होते है। वस्तुतः भारत में दीपावली जैसे त्योहार का उत्साह और आनंद की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। हमारे देश में त्योहारों की परंपरा अति प्राचीन है। जिनका प्रभाव हमारे जन जीवन पर गहरा है। त्योहार जहां मानव मन को जोड़ते है वहीं पौराणिक और धार्मिक परंपराओं के परिप्रेक्ष्य भावनात्मक समीकरण की भी पहचान करते है।

दीपोत्सव का त्योहार को ज्योति पर्व भी कहा गया है। राजा से लेकर रंक तक प्रकाश की अनुपम लहर लहराती है तो वहीं भारत की धरती पर दीप का मेला लग जाता है। दीपोत्सव हमारा सांस्कृतिक पर्व है। विजयादशमी और इसके कुछ दिन बाद ही ज्योति पर्व का आगमन होता है। इस प्रकाश के पर्व के साथ लोक कथाएं, ऐतिहासिक घटनाएं और विविध धर्मों व महापुरूषों की स्मृतियां जुड़ी हुई है।

महा दानी बलि से लेकर श्रीराम तक -

दीपोत्सव के साथ न केवल महा दानी बलि के महादान की कथा जुड़ी हुई है वहीं प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक उत्सव के रूप में भी दीपावली की खुशियां बांटी जाती है। इसके अलावा आयुर्वेद के आचार्य भगवान धन्वतंरि का आविर्भाव, स्वामी परमहंस रामकृष्ण की ब्रह्मलीनता और स्वमी दयानंद का निर्वाण दिवस भी इसी दिन है। इसके अलावा भगवान महावीर का महाप्रयाण, प्रकृति परिवर्तन, व्यापारियों के वर्ष का प्रारंभिक दिन आदि कितनी ही घटनाओं और विशेषताओं का सूचक दीपावली होती है। रामचरित मानस में लंका विजयी के बाद भगवान श्रीराम के अयोध्या आगमन को सुंदर रूप से अनुगामित किया गया है। उल्लेख मिलता है कि जैसे ही श्रीराम और लक्ष्मण जी सीता माता के साथ अयोध्या आते है वैसे ही आकाश गूंज उठता है।

देखिये रामचरित मानस का यह छंद- नभ दुंन्दुभी बाजहिं विपुल गन्धर्व किन्नर गावहीं नाचहिं अप्सरावृन्द परमानंद सुर मुनि पावहीं। भरतादि अनुज विभीषणांगद हनुमादि समेत जे गहे छत्र चामर व्यजन धनु असि चर्म शक्ति विराजते। अर्थ - आकाश में नगाड़े बजने लगे, गंधर्व और किन्नर गाने लगे, अप्सरायें नाचने लगीं, सुर मुनि बड़े सुखी हुए। भरतादि छोटे भाई, विभिषण, अंगद, हनुमान आदि सखा, छत्र, चंवर, पंखा, धनुष, तलवार, ढोल और शक्ति आदि लेकर शोभित हुये।

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