सिखों के चौथे गुरु थे श्री रामदास साहेब जी, जानिए ख़ास बातें
सिखों के चौथे गुरु थे श्री रामदास साहेब जी, जानिए ख़ास बातें
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 श्री गुरु रामदास जी का जन्म श्री हरिदास मल जी सोढी व माता दया कौर जी के घर से कार्तिक बदी 2 संवत 1561 को बाज़ार चूना मंडी लाहौर में हुआ। इनके बचपन का नाम जेठा जी था। बचपन में ही इनकी माता दया कौर जी का निधन हो गया। जब वे सात साल के हुए तो आप के पिता श्री हरिदास जी का भी देहवसान हो गया। इस अवस्था में उन्हें उनकी नानी अपने साथ बासरके गाँव में ले गई। 

यहाँ आकर आप भी अन्य क्षत्रिय बालकों की तरह घुंगणियाँ (उबले हुए चने) बेचा करते थे। जब श्री गुरु अमरदास जी चेत्र सुदी 4 संवत 1608 में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए तो, वे जेठा जी का और अधिक ख्याल रखने लगे। जेठा जी की सहनशीलता, नम्रता व आज्ञाकारिता के भाव को देखकर गुरु अमरदास जी ने अपनी छोटी बेटी भानी का विवाह जेठा जी (श्री गुरु रामदास जी) से कर दिया। 

उनका विवाह होने के बाद वे गुरु अमरदासजी की सेवा जमाई बनकर नहीं, बल्कि एक सिख शिष्य की तरह तन-मन से करते रहे। भाई जेठाजी (गुरु रामदासजी) को श्री गुरु अमरदासजी द्वारा 1 सितंबर सन् 1574 ईस्‍वी में गोविंदवाल जिला अमृतसर में गुरुगद्दी सौंपी गई। 16वीं शताब्दी में सिखों के चौथे गुरु रामदास ने एक तालाब के किनारे डेरा डाला जिसके पानी में ईश्वरीय शक्ति थी। इसी वजह से इस शहर का नाम अमृत+सर (अमृत का सरोवर) पड़ा।

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