हंगामा खड़ा करना ही इनका मकसद है
हंगामा खड़ा करना ही इनका मकसद है
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भारत की संसद लोकतंत्र का प्रतीक। जहां देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से चुने हुए प्रतिनिधि आते हैं देशहित से जुड़े मसलों पर चर्चा करने विकासीय योजनाओं को गति देने के लिए अपने विज़न से विकास की बयार लाने के लिए मगर बीते समय से संसद के दोनों सदनों में जिस तरह से हंगामा होता आया है वह तो कुछ और ही  बयां करता है। सांसद कार्रवाई के दौरान आते हैं और फिर दोपहर तक सदन स्थगित हो जाता है। कई ऐसे सत्र रहे हैं जिनमें लोकसभा की कार्रवाई पूरी तरह से नहीं चल पाई। बमुश्किल ही सदन के सत्रों में 3 बार सांसद विभिन्न मसलों पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए। इस दौरान सदन में बस हंगामा ही होता रहा। ऐसे में संसद का सत्र बेकार रहा। न तो इसमें कोई बिल पेश किया जा सका और न ही किसी क्षेत्र की समस्या सुनी गई।

ठीक वैसी ही स्थिति इस बार के मानसून सत्र में देखने को मिल रही है। जहां श्रद्धांजलि सभा के बाद संसद का सत्र स्थगित कर दिया गया वहीं राज्यसभा को भी स्थगित करना पड़ा हालांकि कुछ समय बाद राज्यसभा की कार्रवाई प्रारंभ हो गई लेकिन केवल शोरगुल के अलावा यहां और कुछ नहीं हुआ। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश आखिर किन मर्यादाओं पर टिका है। ये सवाल हर भारतीय के जेहन में घर कर गए। जनता रह रहकर पूछती रही कि क्या केवल हंगामे से किसी भी घोटाले या मसले का हल निकाला जा सकता है। मगर सांसदों को इस बात से कोई परवाह नहीं थी।

ध्वनिमत से प्रस्ताव का विरोध और समर्थन करने को उन्होंने गलत तरीके से प्रयोग कर हंगामे को ही जरूरी मान लिया। ऐसे में जीएसटी, भूमि अधिग्रहण बिल समेत कई विधेयक के मसौदे अटक रहे हैं। जहां करीब एक वर्ष पहले संसद में कालेधन को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया गया और विपक्ष ने वाॅक आउट किया अब ठीक वैसा ही इस बार भी किया जा रहा है। पहले दिन स्थगित हुए  संसद की कार्रवाई दूसरे दिन भी बाधित हो सकती है। चर्चा के लिए एकत्रित हुए सांसद लगता है चर्चा से ज्यादा धरने के आयोजन पर खर्चा करना अधिक बेहतर समझते हैं।

लगातार हंगामे से सदन की कार्रवाई प्रभावित हो रही है। ऐसे में ऐसी कई समस्याऐं हैं जिनपर सांसदों को चर्चा करना है। वे लंबित हो रही हैं। जिसके कारण विकास प्रभावित हो रहा है। यदि इस बार भी संसद में हंगामा गहराया तो संसद का कीमती समय यूं ही ज़ाया हो जाएगा और देश की जनता से वसूला गया धन इन सांसदों को हंगामा करने के बदले में दिया जाता रहेगा। नतीजतन देश का विकास प्रभावित होगा और न तो किसानों को फसल नुकसानी से राहत मिलेगी और न ही उद्योगों को पर्याप्त जमीन।

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