शहरों में नहीं वह गाँव वाली बात
शहरों में नहीं वह गाँव वाली बात
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वो कहते हैं ना इंसान को दूसरों की थाली में घी ज्यादा दिखाई देता हैं. ऐसा ही कुछ अक्सर गाँव में रहने वाले कई लोगो के साथ होता हैं. बड़ी-बड़ी इमारते, चौड़ी-चौड़ी सड़के, भव्य शॉपिंग मॉल और सुन्दर कपड़े पहने सुन्दर लोग. ये सब उनके दिमाग पर इस कदर छा जाते हैं कि उन्हें इनके आगे गाँव की ताज़ी हवा, खेतों की हरियाली और शान्ति की लहर फीकी लगने लगती हैं. मन में सपने सजाये और आसमान को छूने की चाह लिए वो निकल पड़ते हैं अपने चाहने वालो को पीछे छोड़ एक अनजान शहर में भटकने को.

लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं रहता कि वो अपने गाँव की शांत भरी जिंदगी को छोड़कर शहरों के भाग दौड़ और व्यस्तता से भरे दलदल में फसने जा रहे हैं. एक ऐसा दलदल जहाँ कोई किसी का नहीं होता. सभी अपने कामो में इतने व्यस्त रहते हैं कि आसपास के लोगो पर उनका ध्यान भी नहीं जाता.

गाँव में यदि कोई कुत्ता भी गाड़ी के नीचे आ जाता हैं तो उसकी मदद को दस लोग आ जाते हैं, लेकिन शहर में जब को गाड़ी किसी भोले - भाले इंसान को कुचल कर चली जाती हैं तो मदद करना तो दूर कोई एम्बुलैंस को बुलाने की तकलीफ भी नहीं करना चाहता. वो किसी भी प्रकार के लफ़ड़े में नहीं पड़ना चाहते. 

यदि आप गाँव में किसी से रास्ता पूछोगे तो वो आपको ना सिर्फ सही रास्ता बताएगा बल्कि  शायद आपको उस पते तक छोड़ भी आए. पर जब यही पता आप किसी से शहर में पूछेंगे तो दस में से केवल दो लोग ही हमारी सहयता करने की तकलीफ करेंगे. हमारे गाँव में जब हम घर से बाहर निकलते हैं तो एक मोहल्ले से लेकर तीसरे मोहल्ले तक सत्रह लोग बातचीत कर हालचाल पूछ लेंगे. लेकिन शहर में जनाब आप मोहल्ला छोडो आपके पडोसी को ही आप के बारे में कुछ नहीं पता होता. 

हर साल लाखों लोग गाँव से निकल कर शहर की ओर अपना डेरा ज़माने निकलते हैं. लेकिन उनमे से करीब एक तिहाई लोग हर साल शहर छोड़ पुनः गाँव का रुख करते हैं. सिर्फ इसलिए कि उन्हें शहर में वो गाँव वाली बात नहीं दिखती. वो अपने गाँव की शान्ति, भाईचारा ओर खुलेपन को मिस कर रहे थे. 

हम यह नहीं कह रहे हैं की शहरों में रहने वाले लोग या शहर खुद बुरा हैं. पर यदि आपके पास एक शांत ओर सोशली बेहतर जिंदगी जीने का विकल्प हैं  तो आप उसे चुने. शहर में रहने वालों के पास विकल्प नहीं हैं. वह उसके आदि हो चुके हैं. अंत में हम गाँव में रहने वालो को बस यही सलाह देंगे कि यदि आप किसी करियर को लेकर गंभीर हैं ओर उसमे ही अपनी जिंदगी निछावर करना चाहते हैं तो जरूरत पड़ने पर शहर जरूर जाए. लेकिन यदि आप शहर की चकाचोंध से आकर्षित होकर या दुसरो की नक़ल कर भेड़ चाल चल शहर बसना चाहते हैं तो एक बार पुनः विचार करें. 

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