जालोर: दलित बच्चे की मौत में 'जातिगत' एंगल नहीं, स्कूल में 'मटकी' भी नहीं, बाल आयोग की रिपोर्ट
जालोर: दलित बच्चे की मौत में 'जातिगत' एंगल नहीं, स्कूल में 'मटकी' भी नहीं, बाल आयोग की रिपोर्ट
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जयपुर: राजस्थान के जालौर के एक स्कूल में ‘मटके से पानी पीने पर दलित छात्र की शिक्षक द्वारा पीट-पीटकर की गई हत्या पर सियासी बवाल तो जमकर मचा, इस घटना की आड़ लेकर 'सर तन से जुदा' गैंग ने भी अपने कुकर्मों को छिपाने का भरपूर प्रयास किया। लेकिन अब इस घटना की हकीकत सामने आने लगी है। घटना को जातीय एंगल देकर जिस तरह से सियासत की जा रही है, इसकी पोल मामले की जाँच कर रहे बाल आयोग ने खोल दी है। बाल आयोग ने अपनी जांच के बाद यह स्पष्ट किया है कि बच्चे की मौत में ‘जाति’ का कोई एंगल ही नहीं है।

जालोर मामले में नहीं था जाति का कोई एंगल:-

राजस्थान के राज्य बाल अधिकार आयोग (SCRC) ने जालौर जिले के अंतर्गत आने वाले सुराणा गाँव में प्राइवेट स्कूल का दौरा किया और जांच के बाद बताया कि बच्चे को चांटा मारने के मामले में जाति का कोई आधार नहीं था। बता दें कि इस स्कूल के हेडमास्टर छैल सिंह ने इंद्र कुमार मेघवाल नामक एक दलित छात्र को चांटा मार दिया था, वो बच्चा दूसरे एक छात्र के साथ किताब को लेकर झगड़ रहा था, शिक्षक ने दोनों बच्चों को थप्पड़ लगाया था। इस घटना के कुछ दिनों बाद इंद्र की अस्पताल में मौत हो गई थी। अब बाल आयोग के सदस्यों ने स्कूल के छात्रों, शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों से बात करने के बाद राज्य सरकार को इस पर रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में साफ़ लफ़्ज़ों में कहा गया है कि मृतक छात्र ने चित्रकला की किताब को लेकर एक दूसरे छात्र के साथ विवाद किया था। इसी बात पर टीचर ने दोनों छात्रों को चांटा मारा था।

दलित और सवर्ण साझेदारी से चलाते हैं स्कूल:-

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है की, इस घटना को लेकर बाल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जो बातें कही हैं, वही बात प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, जिला प्रशासन, ग्रामीण, स्कूल में पढ़ने वाले दूसरे बच्चे भी कह रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि, जब ऐसा कुछ था ही नहीं, तो फिर मामले को जातिगत एंगल क्यों दिया गया  ? एक रिपोर्ट के मुताबिक, बाल आयोग के सदस्य शिव भगवान नागा ने बताया है कि स्कूल में पानी पीने के लिए कोई मटका मौजूद ही नहीं था, शिक्षक और तमाम छात्र स्कूल में स्थित एक ही पानी टंकी से ही पानी पीते थे। वहीं, बताया ये भी जा रहा है कि, जिस प्राइवेट स्कूल में यह घटना हुई, उसमें दो पार्टनर हैं। जिसमे से एक राजपूत है और दूसरा मोची समुदाय से है। वहां के स्टाफ में भी आधे से अधिक शिक्षक SC-ST समुदाय से हैं। इनमे मेघवाल, मोची और भील भी शामिल हैं। साथ ही स्कूल लगभग 50 फीसद बच्चे भी SC-ST के हैं। ऐसे में जो स्कूल सवर्ण और दलितों के बीच साझेदारी से चल रहा हो, वहां का स्टाफ भी दलित और सवर्ण मिलकर हो, वहां इस तरह के भेदभाव की बात पर सवाल उठना तो लाज़मी है ?

रिपोर्ट के अनुसार, मृतक इंद्र की मंगलराम नामक अपने साथी छात्र के साथ झगड़ा हुआ था। मंगलराम के हवाले से बाल आयोग ने कहा है कि झगडे के दौरान वहां से गुजर रहे मास्टर छैल सिंह ने जब देखा तो दोनों छात्रों को चांटा जड़ दिया। मंगलराम ने बताया कि दो थप्पड़ लगने के बाद इंद्र क्लास में गिर गया था और उसके आँख और कान में चोट आई थी। वहीं, आयोग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उसी स्कूल में इंद्र का 13 वर्षीय भाई नरेश कुमार भी पढ़ता है। उसने बताया है कि लंच टाइम में मटकी से पानी पीने की वजह से उसके भाई की पिटाई की गई। 

5 साल से बीमार था इंद्र कुमार मेघवाल:-

वहीं, एक रिपोर्ट में बताया गया है कि, बच्चे के पहले से ही बीमार था। मृतक बच्चा इंद्र लगभग 5 साल से कान की बीमारी क्रोनिक सप्युरेटिव ओटाइटिस मीडिया (CSOM) से ग्रसित था।  2017 से 2019 तक सुराणा के ही एक अस्पताल में इंद्र का उपचार चला। वहां के डॉक्टर का कहना है कि CSOM ऐसी बीमारी है, जिससे कान में मवाद, सूजन, दर्द बना रहता है। समय पर उपचार न मिले, तो इंफेक्शन इतना अधिक बढ़ जाता है कि मरीज की जान भी जा सकती है। इंद्र की MRI रिपोर्ट से भी इंन्फरैक्ट यानी खून की सप्लाई रुकने की जानकारी मिली है। एक्सपर्ट बताते हैं कि इन्फेक्टिव मेनेसाइटिस दिमाग के इंफेक्शन के कारण होती है, जिसकी वजह से आंख में सूजन आ जाती है। 20 जुलाई को थप्पड़ मारने के बाद जब 31 जुलाई को सुराणा के ही एक प्राइवेट क्लिनिक में इंद्र की जांच की गई तो इन्फेक्शन बढ़ा हुआ पाया गया। बता दें कि, 20 जुलाई को थप्पड़ मारे जाने के 24 दिन बाद उपचार के दौरान बच्चे की मौत हुई थी। 

पूरे स्कूल में केवल एक टंकी, मटका कहीं नहीं :-

इसी स्कूल में पढ़ाने वाले एक अन्य शिक्षक गटाराम मेघवाल (मृतक बच्चे इंद्र की जाति वाले टीचर) का कहना है कि वो पिछले 7-8 वर्षों से इस स्कूल में पढ़ा रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी किसी तरह का भेदभाव महसूस नहीं किया। स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी कह चुके हैं कि स्कूल में कोई मटकी नहीं है, शिक्षक-छात्र सभी लोग टंकी का पानी पीते हैं। गटाराम मेघवाल ने बताया है कि अभी तक खबरों में कहा गया है कि बच्चे को मटकी से पानी पीने की वजह से पीटा गया, मगर सच्चाई ये है कि स्कूल में भेदभाव जैसा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे स्कूल में केवल एक ही टंकी है और सब उससे ही पानी पीते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल में कुल 8 स्टाफ हैं, जिनमें SC-ST समुदाय के 5 स्टाफ हैं। ऐसे में भेदभाव का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। उधर सियासी बवाल के बाद इस स्कूल की मान्यता (Recognition) रद्द कर दी गई है। इस फैसले पर बाल आयोग का कहना है कि स्कूल की मान्यता निरस्त करने के बाद वहाँ पढ़ने वाले छात्रों के भविष्य को सुनिश्चित करना होगा। 

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