चाणक्य नीति - भाग 1
चाणक्य नीति - भाग 1
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मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए। चाणक्य का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ| वे बच्च्पन से ही विलक्षण थे| उनका  नाम ‘विष्णुगुप्त’ था| अपने उग्र, गूढ़ स्वभाव, और नीति कुशलता के कारण वे ‘कौटिल्य’ कहलाये| चाणक्य ने उस समय के महान शिक्षा केंद्र ‘तक्षशिला’ में शिक्षा पाई थी| 14 वर्ष के अध्ययन के बाद 26 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी समाजशास्त्र, राजनीती और अर्थशास्त्र की शिक्षा पूर्ण की और नालंदा में उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया| चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ बहुत प्रासंगिक हैं  क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण से अभिव्यक्त किया |

आइये जाने उनके कुछ बहुमूल्य नीति सिद्धान्त - 

1  भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं| 

2  जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।  

3  जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है।निर्धनता का अभिशाप भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर ही अंदर जलती रहती है।  

4  ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि  वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है।  

5  जिस देश में लोग भूखमरी का सामना कर रहे हो वहां हवन करने में घी तथा अन्न को जलाना राष्ट्रद्रोह के समान है। ऎसे हवन को करने वाले ब्राह्मण तथा आयोजक दोनों ही मंत्रों की शुद्ध भावना और पूजा के शुद्ध उद्देश्य को अपवित्र करते हैं। अर्थात उन्हें सबसे पहले भूखों को खाना खिलाकर दरिद्रनारायण रूप भगवान को तृप्त करना चाहिए। 

प्रेरक कथन - अनमोल वचन

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