यश जी याद आएंगे जब तक है जान, जब तक है जान
यश जी याद आएंगे जब तक है जान, जब तक है जान
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तेरा हाथ से हाथ छोड़ना, तेरा सायों से रुख मोड़ना. तेरा पलट के फिर न देखना, नहीं भूलूंगा मैं. जब तक है जान, जब तक है जान. जी हा इसी कविता के बोलो की तरह हम बॉलीवुड के लेजेंड यश चोपड़ा को कैसे भूल सकते है. जिन्होंने अपने लाजवाब निर्देशन से ऐसी फिल्मो का निर्माण किया जो हमारे जहन में सदा के लिए बस चुकी है. दुनिया को अलविदा कह चुके यश जी ने अपने जीवन के यश चोपड़ा को डायरेक्टर के साथ प्रोड्यूसर और स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर भी जाना जाता है.

27 सिंतबर, 1932 को आज ही के दिन लाहौर, पंजाब में जन्मे यश जी आज 82वीं बर्थ एनिवर्सरी है. यश जी ने बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत भाई बी.आर. चोपड़ा के साथ 1959 में 'धूल के फूल' से की थी, इस ड्रामा फिल्म में माला सिन्हा, राजेंद्र कुमार और लीला ने अभिनय किया था. यश जी को बड़ी सफलता साल 1973 में फिल्म 'दागः ए पॉयम ऑफ लव' से मिली. इसके बाद उन्होंने 'दीवार', 'कभी कभी', 'त्रिशूल', 'दूसरा आदमी', 'मशाल', 'फासले', 'विजय', 'चांदनी', 'लम्हे', 'परंपरा', 'डर', 'दिल तो पागल है', 'वीर जारा', 'जब तक है जान' जैसी कई सुपरहिट फिल्में दीं.

'जब तक है जान' उनके करियर की आखिरी फिल्म थी. इस फिल्म की रिलीजिंग से पहले ही उनका देहांत हो गया था. यश चोपड़ा की फिल्मों की एक खास बात ये थी कि वो फिल्म की हीरोइन्स को व्हाइट ड्रेस जरूर पहनाते थे. उन्हें ऐसा लगता था कि फिल्म की कामयाबी के लिए ये जरूरी है, अच्छी बात ये भी थी कि उनका ये एक्सपेरिमेंट सफल भी रहा. यानी यश जी कामयाबी के लिए काला जादू नहीं बल्कि व्हाइट मैजिक का इस्तेमाल करते थे. 21 अक्टूबर 2012 को यश जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.

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