बिहार 'जातिगत जनगणना' में OBC की 63 फीसदी आबादी, हक मिलेगा या बंगाल जैसा 'खेला' हो जाएगा ?
बिहार 'जातिगत जनगणना' में OBC की 63 फीसदी आबादी, हक मिलेगा या बंगाल जैसा 'खेला' हो जाएगा ?
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पटना: बिहार की नितीश कुमार सरकार ने आज सोमवार (2 अक्टूबर) को अपने जाति-आधारित सर्वेक्षण (जातिगत जनगणना) के नतीजे जारी किए, जिससे विवाद पैदा हो गया है। बिहार के मुख्य सचिव द्वारा जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि राज्य की आबादी में अन्य पिछड़ी जातियां 63 फीसदी हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि अनुसूचित जातियाँ (ST) 19 प्रतिशत से कुछ अधिक हैं, और अनुसूचित जनजातियाँ (ST) 1.68 प्रतिशत हैं। बिहार की आबादी में ऊंची जातियां या 'सवर्ण' 15.52 प्रतिशत हैं। नीतीश कुमार प्रशासन के तहत किया गया सर्वेक्षण काफी बहस और कानूनी जांच का विषय रहा है।

बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण, जिसे बिहार जाति आधारित गणना के रूप में भी जाना जाता है, ने कुल जनसंख्या 13 करोड़ से अधिक बताई है। विस्तृत विवरण से पता चलता है कि पिछड़ा वर्ग (OBC) जनसंख्या का 27 प्रतिशत है, जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) 36 प्रतिशत है। पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में जाना जाता है, जो बिहार की आबादी का 63 फीसद है। वहीं, भूमिहारों की आबादी 2.86 प्रतिशत, ब्राह्मणों की 3.66 प्रतिशत, कुर्मियों की 2.87 प्रतिशत, मुसहरों की 3 प्रतिशत और यादवों की 14 प्रतिशत है।

इन निष्कर्षों की घोषणा करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व विकास आयुक्त विवेक सिंह ने किया, जो मुख्य सचिव के दायरे में काम करते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, ''आज गांधी जयंती के शुभ अवसर पर बिहार में हुई जाति आधारित जनगणना के आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं। इस काम में लगी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई जाति-आधारित गणना का!" बता दें कि, इस जातिगत जनगणना में पिछड़ा वर्ग की आबादी सबसे अधिक 63 फीसद पाई गई है, जिन्हे देश में 27 फीसद आरक्षण प्राप्त है। हालाँकि, इन आंकड़ों के सामने आने के बाद ये सवाल खड़ा हो गया है कि, क्या बिहार की 63 फीसद OBC आबादी को अपना हक मिलेगा या फिर उनके साथ भी पश्चिम बंगाल जैसा ''खेला'' हो जाएगा ?

बंगाल में OBC आरक्षण के नाम पर क्या खेल ?

इसी साल 25 फरवरी को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने पश्चिम बंगाल का दौरा किया था, जिसमे खुद बंगाल सरकार की संस्था कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRI) की रिपोर्ट से पता चला था कि ममता सरकार ने हिंदू धर्म से धर्मांतरित होकर मुस्लिम बने लोगों को भी OBC की सूची में शामिल कर दिया है। पिछड़ा आयोग के इस दौरे में यह भी पता चला था कि बंगाल सरकार ने OBC की लिस्ट में कुल 179 जातियों को शामिल किया है, जिसमे से 118 जातियाँ अकेले मुस्लिमों की है। जबकि, हिंदुओं की महज 61 जातियों को ही OBC की सूची में जगह दी गई है। इसको लेकर NCBC के राष्ट्रीय अध्यक्ष हंसराज अहीर ने कहा है कि पश्चिम बंगाल की कुल जनसँख्या में से 70% हिंदू हैं और 27% मुस्लिम। इसके बाद भी बड़ी तादाद में मुस्लिम जातियों को OBC की सूची में जगह दे दी गई है और उन्हें OBC आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है, जिससे हिन्दू OBC का हक़ मारा जा रहा है। पिछड़ा आयोग ने अपनी जांच में यह भी दावा किया था कि, ममता सरकार ने बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं तक को भी OBC आरक्षण का लाभ दे रखा है, जो कि अनुचित है।  

 

हंसराज अहीर ने यह भी कहा था कि इस दौरे में पिछड़ा आयोग ने पाया कि 2011 से पहले बंगाल में OBC की 108 जातियाँ हुआ करती थीं। मगर, इसके बाद इसमें 71 जातियों को और शामिल किया गया। इन 71 में से 66 जातियाँ अकेले मुस्लिमों की थी। वहीं, हिंदुओं की महज 5 जातियों को ही OBC आरक्षण का लाभ देने के लिए इस सूची में जगह मिल पाई। आयोग ने आशंका जताई थी कि बंगाल सरकार की संस्था CRI की गलत रिपोर्ट के कारण, मुस्लिम जातियों को OBC सूची में शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में OBC आरक्षण को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। इसमें कुल 179 जातियों को OBC लिस्ट में शामिल किया गया है। इसमें A वर्ग में अति पिछड़ों को रखा गया है। इसमें 89 में से 73 मुस्लिम और केवल 8 हिंदू जातियां हैं। वहीं B श्रेणी में पिछड़ी जातियों को रखा गया है, इसकी सूची में कुल 98 जातियां है, जिसमें 53 हिंदू और 45 मुस्लिम जातियां हैं। यानी बंगाल में कुल 179 पिछड़ी जातियों में से 118 जातियां तो मुस्लिमों की ही है, बाकी 61 पिछड़ी जातियां हिन्दुओं की है। अपने दौरे के दौरान NCBC ने जाँच में यह भी पाया है कि ममता सरकार ने सरकारी नौकरियों में बड़े पैमाने पर मुस्लिमों को आरक्षण प्रदान किया है। दरअसल, OBC की A कैटेगरी (अति पिछड़े) में मुस्लिमों को सरकारी नौकरी में 91.5 फीसद का एकतरफा आरक्षण मिल रहा है। वहीं, हिंदू OBC महज 8.5 प्रतिशत में ही गुजारा करने को मजबूर है। पिछड़ा आयोग ने यह भी दावा किया था कि बंगाल के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले 90% छात्र मुस्लिम OBC श्रेणी के हैं।

इससे सवाल उठने लगा है कि, जिस इस्लाम में जातिवाद न होने का दावा किया जाता है, वो भारत में ''अति पिछड़ी जाति'' श्रेणी में हिन्दुओं (8) से भी अधिक पिछड़े (मुस्लिम 73) कैसे हो गए हैं ? क्या ये लाभ उन्हें और रोहिंग्या-बांग्लादेशियों को सरकारों द्वारा वोट बैंक की लालच में दिया गया है ? क्योंकि, बीते कई चुनावों में हमने देखा है कि, मुस्लिम समुदाय एकतरफा और एकमुश्त होकर वोट करता है, इसलिए कई सियासी दल हर तरह से उन्हें खुश रखने की कोशिश करते ही हैं। ऐसा राजनेताओं के बयानों में भी कई बार देखा जा चुका है। वहीं, बंगाल में OBC आरक्षण की स्थिति और उसके पड़ोसी राज्य बिहार में OBC की 63 फीसद आबादी को देखते हुए ये सवाल उठ रहा है कि, बिहार में सरकार ने जातिगत जनगणना तो करा ली, लेकिन क्या वाकई OBC को उसका पूरा हक़ मिलेगा, या फिर उनके साथ भी बंगाल जैसा 'खेला' हो जाएगा और वे बस राजनितिक मोहरा बनकर रह जाएंगे ? क्योंकि, बिहार सरकार ने अपनी जातिगत जनगणना में कहीं भी धर्म (मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध) की आबादी नहीं बताई है, शायद सरकार ने उन्हें OBC में शामिल कर लिया है।  

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