भारत माता की जय से, नागरिकों का भाग्य जगाने का प्रयास!
भारत माता की जय से, नागरिकों का भाग्य जगाने का प्रयास!
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फिर नारों को लेकर राजनीति हुई। फिर राजनीतिक आग की आंच तेज़ हुई और उसपर नेताओं की रोटियां सिकने लगीं। पहले नेता लड़ रहे थे कि देशविरोधी नारेबाजी क्यों की गई। अब नेता बयानबाजी कर रहे हैं कि भारत माता की जय क्यों नहीं कहा जा रहा। आखिर भारतीय राजनीति में यह किस तरह का अध्याय प्रारंभ हो गया है। क्या नेताओं को सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद जैसे मसलों के अलावा और कोई मुद्दे नहीं मिल रहे हैं या फिर जानबूझकर नेता असल मसलों को ठंडे बस्ते में ही रहने देना चाहते हैं।

क्या बिजली, सड़क पानी, रोजगार, उद्योग, विकास, अधोसंरचना और डिजीटल विकास जैसे मसले लुप्त हो रहे हैं या फिर जनता इतनी समझदार नहीं है कि इनके मायने न समझ सके। जिसके कारण नेताओं को अलग मसलों पर चर्चा करनी पड़ रही है। ताज़ा घटनाक्रम महाराष्ट्र में सांसद असदुद्दीन औवेसी द्वारा दिए गए एक वक्तव्य का है। ओवैसी के भारत माता की जय न बोलने से राजनीति गर्मा गई है। ओवैसी का कहना है कि यह उनका संवैधानिक कर्तव्य नहीं है।

संविधान में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि भारत माता की जय बोलना अनिवार्य है। जबकि आरएसएस के सरसंघ चालक डाॅ. मोहन भागवत का कहना है कि आखिर भारत माता की जय सभी को बोलना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देशविरोधी नारेबाजी लगने पर एक दूसरे का विरोध करने वाले नेताओं को अब एक नया मसला मिल गया है। ये नेता अब भारत माता की जय बोलने और न बोलने को लेकर एक दूसरे का विरोध करने में लगे हैं। एक बार फिर देश में वैमनस्य फैलता नज़र आ रहा है।

सांसद ओवैसी के लिए नेताओं द्वारा निशाने पर लेकर पाकिस्तान जाने तक की बात कह दी गई है। फिर नेताओं द्वारा भावनात्मक राजनीति कर देशवासियों को महंगाई, बेरोजगारी, विकास, भ्रष्टाचार आदि मसलों से भटकाया जा रहा है। संभावना है कि इस मसले पर संसद में अच्छा-खासा बवाल हो और फिर संसद में बिल लंबित हो जाऐं। ऐसे में विकासीय बातें अटक सकती हैं। जेएनयू मसले की ही तरह इस मसले को भी बेवजह तूल दिया जाए। इस बात की संभावना है।

इस तरह की राजनीति से नेताओं द्वारा उन अल्पसंख्यक बाहुल्य वाले क्षेत्रों में राजनीति गर्माई जा सकती है जो कि आगामी समय में विधानसभा चुनाव के दायरे में होंगे। ऐसे में यहां पर अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक वोट बैंक अलग करने और वोटों का धु्रवीकरण करने का प्रयास भी हो सकता है। बहरहाल इस तरह के राजनीतिक मसलों से देश में फिर से एक नई बहस छिड़ गई है। देश की राजनीति नारेबाजी पर केंद्रित विवादों पर आगे बढ़ रही है और लोग अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं। 

'लव गडकरी'

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