आकाश की ओर देखकर उस सन्यासी ने कुछ मंत्र बुदबुदाया और फिर एक हाथ में रूद्राक्ष निकल आया। उसी की तरह अपने शरीर पर राख लपेटकर उसकी के पास की कुटिया में बैठा एक सन्यासी उसकी ओर आने वाली भीड़ को अपनी लंबी जटाऐं दिखा रहा था। तो एक सन्यासी अपने डेरे में अपने आसपर पर कुछ आधा लेटा हुआ सा चीलम फूंक रहा था। उसकी आंखें एकटक आती - जाती भीड़ को निहार रही थीं तो शरी निढाल सा नज़र आ रहा था।
उसी के कुछ नज़दीक एक सन्यासी अपने शिविर के बाहर बैठकर उसे अभिवादन करने वालों को भस्म का तिलक लगा रहा था। जी हां, जितने कदम उतनी कहानियां। भारत को लेकर कई विदेशी कौतूहल रखते हैं। विदेशी ही क्या आम भारतीयों को भी भारत के धर्म, इसकी संस्कृति और वर्तमान में देश के बदलते परिवेश को लेकर आश्चर्य होता होगा। आखिर है यह महामानवों का समुद्र।
जिसमें असंख्य जलधाराऐं आती हैं और इसके रंग में ही समा जाती हैं। सन्यासी हमारे धर्म का आधार है और धर्म हमारे जीवन का। हमारी हर आती जाती सांस में धर्म मौजूद है। फिर चाहे एक छोटे से बच्चे को मंदिर ले जाते उसके दादाजी हों या फिर उसे नित्य स्नान करवाती उसकी मां हो।
उसके सामने जय श्री कृष्ण, राम - राम और हर हर गंगे बोलना नहीं भूलती। हालांकि समय बदलने के साथ अब बातें कुछ बदल गई हैं लेकिन आज भी हमारे सन्यासी हमारा आधार बने हुए हैं। मान्यताऐं कितनी ही बदल जाऐं। केसरिया चोले में कितने ही ढोंगी निकलकर आ जाऐं और कितनों पर ही तरह - तरह के आरोप लग जाऐं लेकिन इसके बाद भी हम अपने सन्यासियों का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते।
उनके सामने नतमस्तक होना हमारे डीएनए में जो है। वास्तव में हमारा जीवन, हमारी मान्यताऐं और हमारी पद्धतियां सन्यासियों की ही देन हैं। खुद को सूर्य की धूप में और धुनि के धुंऐ और अग्नि की आंच में तपाकर ये हमें जीवन का सुख देते हैं।
सन्यासी की कुटिया भले ही खास और बांस से सजी हो मगर वह श्रद्धालुओं के आने पर उसे सम्मान के साथ बैठाते हैं। जिन सन्यासियों की सेवा समाज को करना चाहिए। वे सन्यासी कभी ठंडे जल से तो कभी भोजन से श्रद्धालु को तृप्त करते हैं।
'लव गडकरी'