धर्म की दीवार से मुक्त था वह गुब्बारे वाला!
धर्म की दीवार से मुक्त था वह गुब्बारे वाला!
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25 दिसंबर वह दिन जब विश्वभर में क्रिसमस की खुशियां मनाई जा रही थीं। बड़े पैमाने पर आमजन और ईसाई समुदाय के श्रद्धालु शाम होते ही चर्च की ओर पहुंचे। चर्च में विभिन्न समारोह का आयोजन हो रहा था। लोग रंग बिरंगे सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन देखकर खुश हो उठे। कुछ लोग नए और आकर्षक परिधानों में सजे - धजे थे। तो कोई अपने मित्रों के साथ हंसी ठिठोली कर रहा था।

मगर एक छोटा सा बालक जिसकी उम्र कुछ प्राथमिक शाला में अध्ययन करने की होगी। वह कंपकंपाती सर्दी के बावजूद गुब्बारे का सामान और गुब्बारे लेकर गुब्बारे बेचने के लिए चर्च के बाहर खड़ा था। अपने गुब्बारे बिकने पर वह बेहद खुश हो उठा। उसकी खुशी को किसी धर्म विशेष में बांटना बेईमानी सा होगा। उसकी मुस्कुराहट से यह नहीं पता चल रहा था कि वह हिंदू है, क्रिश्चन है या फिर कोई और है। 

यह माहौल ठीक उन दिनों से कुछ पहले का है जब देश में असहिष्णुता का राग अलापा जा रहा था। देश में धर्म परिवर्तन और घर वापसी जैसे मसलों पर चर्चा की जा रही थी। चर्चा क्या लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा था। जो पहले किसी और धर्म में थे उन्हें हिंदू बनाया जा रहा था और हिंदू बने लोगों को फिर से कट्टरवादी ताकतें अपने मजहब में खींच रही थीं।

यह बेवकूफी चलती रही मगर जिम्मेदारों का ध्यान तक नहीं था। हां कहीं कहीं पर लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने के आरोप भी लगाए गए। देश में अराजकता का माहौल रहा। उत्तरप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन और मजहब में वापसी किए जाने की बातों से लोग डरे हुए थे। हालांकि अन्य क्षेत्रों में जनता अपने कार्यों मे लगी थी। उसे तो फिक्र थी अपने रोजगार की।

उसे फिक्र थी अपने बच्चों की। लिहाजा वह इन बातों से अछूता रहा। हां, मगर क्रिसमस के अवसर पर चर्च के बाहर मौजूद गुब्बारे वाले को देखकर यह अहसास हुआ कि आखिर कौन सा धर्म उसे संरक्षण दे रहा है। यदि वह हिंदू है तो फिर उसे इतनी छोटी उम्र में कंपकंपाती ठंड में रोजगार जुटाने के लिए क्यों निकलना पड़ा।

ऐसा समय जब स्कूलों में सुबह की शिफ्ट का समय कुछ देरी का कर दिया जाता हो, यह बालक ठंड में खड़े रहकर गुब्बारे बेचता रहा। धर्म परिवर्तन और घर वापसी की चिंता करने वालों ने इसकी सुध क्यों नहीं ली। यह विचार उस समय किसी के ज़हन में नहीं आया कि इस बच्चे को भी प्राथमिक और अनिवार्य शिक्षा का लाभ मिलना चाहिए।

इस बच्चे की कहानी से यह बात सिद्ध होती है कि इस तरह की बातें उन लोगों का विषय बनकर रह गई हैं जो निजी स्वार्थ और राजनीतिक हित के लिए अपने हित का साधन करते हैं। कई बार क्रिश्चन धर्म को लेकर लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाने की बात सामने आती है। यह भी एक तरह का रूढ़िवादी विचार है।

हर व्यक्ति को अपने अनुसार धर्म मानने की स्वतंत्रता है। इसके उलट दबाव में धर्म परिवर्तन करवाने की कोशिशें भी गलत साबित ठहरी हैं। मजहब के नाम पर लोगों को बांटने का यह राजनीतिक खेल जनता के सामने आने के बाद बहुत हद तक इन पर लगाम लगी है लेकिन आज भी दबे छिपे तरीके से इसकी अंगीठी से राजनीति की रोटियां सेंकने के प्रयास किए जाते रहे हैं। 

'लव गडकरी'

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