RBI ने 'इस्लास्मिक बैंकिंग' के लिए दी सहमति
RBI ने 'इस्लास्मिक बैंकिंग' के लिए दी सहमति
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नई दिल्ली: आरबीआई से गवर्नर रघुराम राजन के विदा होते ही बदलाव की बयार बहने लगी है.भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याजमुक्त बैंकिंग की शुरुआत करने के लिए सरकार के साथ काम करने का फैसला कर लिया है, ताकि धार्मिक कारणों से हो रहे आर्थिक बहिष्कार (फाइनैंशियल एक्सक्लूजन) से निपटा जा सके. आरबीआई के इस फैसले से दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी के लिए इस्लामिक फाइनेंस के लिए नया रास्ता खुल सकता है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस सम्बन्ध में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले हफ्ते अपनी सालाना रिपोर्ट में एक प्रस्ताव बनाया है.इस प्रस्ताव से आरबीआई के पूर्व की राय में बदलाव देखने को मिल रहा है.जिसमें पहले कहा था कि इस्लामिक फाइनेंस को नॉन-बैंकिंग चैनल्स जैसे इंवेस्टमेंट फंड्स और कोऑपरेटिव्स के माध्यम से ही ऑफर किया जा सकता है जिसका आशय है कि भारत की करीब 18 करोड़ की मुस्लिम आबादी जो देश का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है, वह इस्लामिक बैंकिंग एक्सेस नहीं कर सकता था. क्योंकि कानून, बैंकिंग को ब्याज आधारित बनाता है, जो कि इस्लाम में जायज नहीं मानी जाती.

इस नए प्रस्ताव पर आरबीआई ने कहा कि वह सरकार से परामर्श के बाद ब्याज-मुक्त बैंकिंग प्रोडक्ट्स के विस्तार के लिए काम शुरू करेगी. इससे साफ संकेत मिलता है कि यह इस समर्थित कानून के लिए रास्ता तैयार करता है. इससे इस्लामिक बैंकिंग शुरू होने की संभावनाएं  बढ़  गई है.

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