क्या छत्रपति शिवाजी के राज में गैर-हिन्दुओं के वसूला जाता है जज़िया ?
क्या छत्रपति शिवाजी के राज में गैर-हिन्दुओं के वसूला जाता है जज़िया ?
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आज ही के दिन, 1680 में देश के महान शासकों में से एक और मुगलों की जड़ें हिला देने वाले महान हिन्दू योद्धा छत्रपति शिवाजी ने अपना देहत्याग किया था। 6 जून, 1674 को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया गया था। इसी दिन छत्रपति शिवाजी ने महाराष्ट्र में हिंदू राज्य की स्थापना की थी। राज्याभिषेक के बाद उनको छत्रपति की उपाधि दी गई। वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक मंझे हुए कूटनीतिज्ञ भी थे। 

शिवाजी एक समर्पित हिन्दू होने के साथ ही धार्मिक रूप से बेहद सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुस्लिमों को पूरी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने खुद भी अनुदान दिया। उनके हिन्दू राज में हिन्दू पंडितों की तरह मुसलमान संतों और फकीरों को भी पूरा सम्मान दिया जाता था। शिवाजी की सेना में 1,50,000 योद्धा थे, जिनमें से लगभग 66,000 मुस्लिम थे। शिवजी के राज में मुगलों की तरह दूसरे धर्म के लोगों से जजिया (एक प्रकार का टैक्स) नहीं वसूला जाता था। शिवाजी पहले हिंदुस्तानी राजा थे, जिन्होंने नौसेना की अहमियत को पहचाना और अपनी मजबूत नौसेना बनाई। उन्होंने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की रक्षा के लिए तट पर कई किले स्थापित किए, जिनमें जयगढ़, विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग और अन्य स्थानों पर बने किले अहम थे।

शिवाजी को माउंटेन रैट भी कहा जाता है, क्योंकि वह अपने क्षेत्र को भली-भांति जानते थे और कहीं से कहीं निकल कर अचानक ही हमला कर देते थे और फिर पहाड़ों में गायब हो जाते थे। उनको गुरिल्ला युद्ध का जनक भी कहा जाता है। वह छिपकर दुश्मन की विशाल सेना पर हमला करते थे। गुरिल्ला युद्ध मराठों की रणनीतिक कामयाबी का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण था। इसमें वे छोटी टुकड़ी में छिपकर अचानक दुश्मनों पर हमला बोलते और उसी तेजी से जंगलों और पहाड़ों में छिप जाते। वर्ष 1659 में आदिलशाह ने एक अनुभवी और दिग्गज सेनापति अफजल खान को शिवाजी को कैद करने के लिए भेजा था। वो दोनों प्रतापगढ़ किले की तलहटी पर एक झोपड़ी में मिले। दोनों के बीच यह समझौता हुआ था कि दोनों सिर्फ एक तलवार लेकर आएंगे। शिवाजी को पता था कि अफजल खान उन पर हमला करने के मकसद से आया है। शिवाजी भी पूरी तैयारी के साथ उससे मिलने पहुंचे। अफजल खां ने जैसे ही उन पर हमले के लिए कटार निकाली, छत्रपति ने अपना कवच आगे कर दिया। अफजल खां कुछ और समझ पाता, इससे पहले ही शिवाजी ने हमला कर दिया और उसे वहीं ढेर कर दिया।

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