उन्हें एथलीट कहें, डाकू कहें या क्या कहें ? आखिर कौन थे पान सिंह तोमर
उन्हें एथलीट कहें, डाकू कहें या क्या कहें ? आखिर कौन थे पान सिंह तोमर
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नई दिल्ली: ''बीहड़ में तो बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में'', यह डायलॉग तो आपने सुना ही होगा, यह लोकप्रिय संवाद है 2012 में आई बेहतरीन अभिनेता इरफ़ान खान की फिल्म पान सिंह तोमर का। यह कहानी, सेना में शामिल होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय एथलीट बनकर कई पदक जीतने वाले उस इंसान की है, जिसकी पहचान मरते समय भले ही एक डकैत की रही है। लेकिन, उसके अपनों ने पान सिंह को कभी भी डकैत नहीं माना। झांसी से करीब 25 किमी दूर बबीना कस्बे में रहने वाले 'पान सिंह तोमर' अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनके किस्से आज भी चर्चित हैं। पान सिंह तोमर ने साल 1932 से लेकर 1 अक्टूबर, 1982 तक इंडियन आर्मी के जवान रहे। इस दौरान उन्होंने अपनी दौड़ने की प्रतिभा को निखारा और 1950 और 1960 के दशक में सात बार के राष्ट्रीय स्टीपलचेज़ में चैंपियन बने। 1952 के एशियाई खेलों में भी पान सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर एक बेहतरीन फौजी, शानदार एथलीट, कैसे डकैत बन गया।

दरअसल, रिटायरमेंट लेने के बाद जब पान सिंह अपने पैतृक गांव वापस आए, तो वो भ्रष्टाचार से सने हुए सिस्टम का शिकार हो गए। उनके परिवार के सदस्यों ने उनकी ज़मीन को अवैध तरीके से कब्जा लिया था, जिसका उन्होंने विरोध किया। लेकिन प्रशासन ने उनका साथ नहीं दिया। विरोधियों द्वारा उनकी मां का क़त्ल तक कर दिया गया। ऐसे में पान सिंह ने अपनी जंग खुद लड़ने का फैसला किया और बागी बनकर विरोधियों से बदला लेने लगे। एक रिपोर्ट के अनुसार, पान सिंह का एनकाउंटर करने वाले तात्कालीन DSP एम।पी सिंह कहते हैं कि पान सिंह के नाम की दहशत पूरी चंबल घाटी में थी। लोगों के लिए वो घाटी का शेर था। यहां तक कि खुद पुलिस वाले भी उनके नाम से खौफ खाते थे। वहीं उनके सगे भतीजे पूर्व डकैत बलवंत सिंह तोमर अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि उनके काका बहुत खुश-दिल इंसान थे। वो हमेशा हंसी-मजाक किया करते थे। 

बलवंत ने बताया था कि वो जब कंधे पर बंदूक रखकर वे किसी को निशाना साध लेते थे, तो सामने वाले का बचना मुश्किल था। पान सिंह के बेटे शिवराम ने भी हमेशा कहा कि उनके पिता डकैत नहीं थे। उन्हें इस शब्द के उपयोग से आपत्ति है। शिवराम के मुताबिक, उनके पिता पेशेवर अपराधी नहीं थे। वो बागी थे। हालात ने उन्हें मजबूर कर दिया, नहीं तो वो बागी नहीं बनते। बता दें कि चम्बल घाटी के डकैत के रूप में कुख्यात हुए पान सिंह तोमर को 1981 में एक मुठभेड़ में मार दिया गया।  उन्हें पकड़ने के लिए BSF की दस कंपनिया, STF की 15 कंपनियों और जिला पुलिस ने संयुक्त रूप से काम किया था। 

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