गठजोड़ की राजनीति के बीच नीतीश आखिर कैसे लाऐंगे विकास की बयार!
गठजोड़ की राजनीति के बीच नीतीश आखिर कैसे लाऐंगे विकास की बयार!
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आखिरकार मुख्यमंत्री नीतीश की बिहार के 34 वें मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी हो ही गई। नीतीश 5 वीं बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। राज्य के विकास के लिए यह अच्छा ही रहा कि राज्य में पिछली बार कार्य कर चुकी पार्टी को ही दुबारा मौका दिया गया। नीतीश से जनता को भी बड़ी उम्मीदें हैं। विकास पुरूष के तौर पर पहचान बनाने वाले नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर छाने लगे हैं। मगर उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है बिहार राज्य का समग्र विकास।

माना जा रहा है कि नीतीश को कांग्रेस और आरजेडी के समर्थन से सरकार बनाने के कारण भाजपा की उपेक्षा झेलनी पड़ सकती है। जिसके कारण नीतीश को अपने बूते पर विकास करना होगा। जिस तरह से दिल्ली में केंद्र और राज्य के बीच तकरार हो रही है ऐसे में गैर भाजपाई सरकार के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं। राजनीतिक तौर पर तो नीतीश के लिए मुश्किलें है हीं। मगर राज्य के विकास के लिए भौतिक परेशानियों से भी नीतीश को दौ चार होना होगा।

हालांकि चुनौतियों से जूझने में नीतीश तब भी कम नहीं पड़े जब उन्होंने भाजपा से अलग होकर बिहार में अपनी राह चुनी थी और फिर इस विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के माध्यम से लालू का हाथ थामा था। फिर विकास पुरूष के पास राज्य के विकास की एक सोच है जिससे वे राज्य में विकास की बयार ला सकते हैं। हालांकि जहां तक नीतीश के मंत्रिमंडल का सवाल है। नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल में लगभग सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर राज्य की जनता को पहली मर्तबा तो खुश कर ही दिया है। 

जातिवादी की राजनीति को समझते हुए नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल में यादवों को प्रतिनिधित्व देते हुए आरजेडी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव के दोनों पुत्रों को अवसर दिया। नीतीश ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद लालू के दोनों बेटों को शपथ दिलवाई इसे अहम माना जा रहा है। दरअसल मुख्यमंत्री के बाद शपथ लेने वाला मंत्री काफी अहम माना जाता है।

ऐसे में लालू के बेटे तेजस्वी का कद मंत्रालय में ऊंचा हो सकता है। दूसरी ओर नीतीश ने राजपूत जाति से जयकुमार सिंह और कांग्रेस के खेमे से राजपूतों का प्रतिनिधित्व करने वाले अवधेश सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल किया। यही नहीं उन्होंने कोइरी जाति के कृष्णनंदन वर्मा, मुस्लिम चेहरे के तौर पर अब्दुल जलील मस्तान को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है। 

उन्होंने महिला वर्ग से जेडीयू की मंजू वर्मा को स्थान देकर महिला प्रतिनिधित्व की बात रखी। दूसरी ओर दलित चेहरे के तोर पर संतोष निराला को उन्होंने मंत्रिमंडल में स्थान दिया तो मैथिल  ब्राह्मण शिवचंद्र राम को स्थान दिया। हालांकि अब्दुल जलील और शिवचंद्र राम दोनों कांग्रेस खेमे के हैं लेकिन उन्हें प्रतिनिधित्व देकर नीतीश ने लगभग हर वर्ग को साधा है। नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल में चंद्रिका को स्थान देकर एक अनुभवी और समझदार नेता को चुना। ऐसे में नीतीश जातिवर्ग से अलग बिहार के विकास का विचार करते नज़र आते हैं।

दरअसल चंद्रिका पहले भी मंत्री रह चुके हैं और वे अपने काम के लिए जाने जाते हैं। हालांकि नीतीश के गठबंधन मंत्रिमंडल में कई खैवनहार बैठे हैं ऐसे नीतीश के लिए सभी दलों के बीच तालमेल बैठाना प्रमुखता होगी। यही नहीं बिहार में सड़कों को सुव्यवस्थित करने, रोजगार का सृजन करने, प्राकृतिक आपदाओं से जूझने की चुनौती भी होगी क्योंकि अब केंद्र बिहार पर अधिक मेहरबान होने वाली नहीं है हालांकि भाजपा और जेडीयू द्वारा सौहार्दपूर्ण राजनीति किए जाने की बात सामने आई है मगर यह भी साफ है कि पीएम मोदी राजनीतिक तौर पर नीतीश सरकार को विकास करने का मौका नहीं देना चाहेंगे।

नीतीश के खेमे में दो कम अनुभवी विधायक हैं। तेजस्वी यादव तो पहले भी राजनीति की पारी खेल चुके हैं लेकिन तेजप्रताप यादव पहली पार ही मैदान में आए हैं ऐसे में आरजेडी को दोनों नेताओं के कदमों का ध्यान रखना होगा। बिहार के लिए सबसे बड़ी समस्या यहां घटने वाले विकास हैं। ऐसे में नीतिश को इस मसले पर अच्छा कार्य करना होगा। बिहार में उद्योगों की बयार किस तरह से नीतीश लाते हैं इस पर सवाल उठाए जा सकते हैं। बिहार में होने वाली खेती और धान को औद्योगिक तौर पर उपयोगी बनाकर नीतीश विकास की बयार ला सकते हैं।

मगर उद्योग के लिए नीतीश को सुव्यवस्थित सड़कों का जाल बिछाना होगा। राज्य के अधीन आने वाला विकास तो नीतीश कर सकते हैं मगर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना पर उन्हें केंद्र की बेरूखी झेलनी पड़ सकती है। इसके बाद उनके मंत्रिमंडल में कुछ दबंगों को भी स्थान दिया गया है। आरजेडी की दबंगई के कारण भी उन्हें उपेक्षा झेलना पड़ सकती है। नीतीश को नक्सलवाद का भी सामना करना होगा। हालांकि केंद्र ने राज्यों को नक्सलवाद से लड़ने के लिए सहायता देने की बात कही है लेकिन राजनीति की धुरी अलग हो जाने के बाद संभव है कि नीतीश को नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए राज्य के रक्षा तंत्र को और मजबूत करना होगा । ऐसे में राज्य पर आर्थिक बोझ बढ़ना लाजिमी है।

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