नागरिकों के लिए सैन्य प्रशिक्षण के आखिर क्या हैं मायने
नागरिकों के लिए सैन्य प्रशिक्षण के आखिर क्या हैं मायने
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सुबह सवेरे बालकनी या गैलरी में ताज़ी हवा के झोंकों के बीच चाय की चुस्कियां लेना, हल्की सुनहरी सूर्य की किरणों के साथ आसपास के पेड़ की डाल पर बैठी चिडि़या की चहचहाट मन को बहुत ही सुकून देती है लेकिन चाय की चुस्कियों में तब तक मज़ा नहीं आता है जब तक कि सुबह के अख़बार पर नज़र न दौड़ाई जाए। मगर अब तो वह सुबह के सुकूनभरे रंग में भंग ही डालने लगा है। फ्रंट पेज पर ही हत्या, लूट और देश के साथ विदेशों में आतंकी हमलों की ख़बरों से मन खिन्न हो जाता है। चिडि़या की चहचाह में मज़ा नहीं आने लगता। दूसरी ओर जब खबरिया चैनलों पर नज़र गड़ाई जाती है तो कुछ ही देर में ऐसा लगता है जैसे सिर पर कई किलो वज़नी कोई भार रख दिया गया हो।

अपने आसपास मंडराते आतंकी ख़तरों और कम हो रही राष्ट्रभक्ति की भावनाओं से लोग परेशान हो जाते हैं। आखिर क्या पता किस पल क्या हो जाए। फिर कई लोग तो ऐसे होते हैं जिन्हें देश के हालातों पर चर्चा करना ही बेफिजूल लगता है। कुछ ऐसे होते हैं जो बस की सीट पर बैठकर नाश्ता करने के बाद नाश्ते की प्लेट को बस की खिड़की से ही बाहर फैंक देते हैं। यही नहीं ज़रा सोचिए एक दस या बारह वर्ष का बच्चा आज कल  कौन से फिल्मी गीत गाने लगता है। बच्चे अब कहने लगे मो से बब्बा.., बीड़ी जलई ले और इस तरह के गाने लगते हैं। एक विद्वान ने कहा है कि जब किसी देश में नागरिकों की जागरूकता और उस देश के प्रति उनके लगाव को देखना हो तो बस यह जान लेना ही काफी होता है कि उस देश का बच्चा कौन से गीत गाता है।

ऐसे में भारत के बच्चों के होठों पर चढ़ते गीत भारत की भावी युवा पीढ़ी को आखिर कहां ले जा रहे हैं यह जानकारी मिलती है। देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के माहौल, भटकते युवा, देशक्ति की कमी, नागरिक सहकार की कमी के कारण कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं। ये परेशानियां कई बार छोटी होती हैं तो कभी इनका स्वरूप बड़ा हो जाता है। मगर ये आखिर में भारत के नागरिकों को ही परेशान करती हैं। मगर जब हम सेना की ओर नज़र दौड़ाते हैं तो सैनिक इन परिस्थितियों के बाद भी सही तरह से अपना काम करते हैं। वे सख्त अनुशासन के दायरे में रहकर देश की सेवा करते हैं।

उनके मन में केवल एक ही जज़्बा होता है राष्ट्रप्रेम का। भारतीय सेना का अनुशासन और राष्ट्र के लिए समर्पण ही उसे विश्व में अग्रणी सेना में से एक बनाता है। सेना तो पाकिस्तान की भी लेकिन वह चर्चाओं में निरंकुशता के लिए ही रही है। पाकिस्तान में सियासी पलट सेना के माध्यम से होती है जबकि भारतीय सैनिक भारत के संविधान और अपने राष्ट्रपति के लिए समर्पित रहते हैं। राष्ट्रपति के माध्यम से वे देश के नागरिकों के लिए अपना योदान देते हैं। जब सैनिक नागरिकों के बीच होते हैं तो भी वे अनुशासित होते हैं हालांकि कुछ समय से सैनिकों के मन पर भी देश के बदलते हालातों का असर पड़ने लगा है मगर आज भी सैन्य अनुशासन की मिसालें दी जाती हैं।

ऐसे में ये सवाल उठने लाजिमी हैं कि आखिर भारतीय नागरिकों को भी सैन्य जीवन से कुछ सीखना चाहिए। क्या भारत में देशभक्ति की बात करना, देशभक्ति से ओतप्रोत गाने सुनना एक पागलपन है। क्या यह केवल राजनीतिक पार्टियों का ही अधिकार है जो अपने चुनावी प्रचार के दौरान इनका खासा उपयोग करती हैं। सैन्य जीवन आम नागरिक में अनुशासन विकसित करता है यही नहीं सैन्य जीवन से अपने कर्तव्य का आभास भी होता है। ऐसे में लोगों के लिए सैन्यप्रशिक्षण की बात सामने आती है। यदि नागरिकों को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाए तो यह एक राष्ट्र के विकास के लिए बेहतर बात होगी।

देश में बढ़ती आतंकी घटनाओं की रोकथाम भी हो सकेगी। यदि राष्ट्रवासी सैन्य जीवन से प्रशिक्षित होंगे तो देश में सांप्रदायिकता की भावना विकसित नहीं हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि सेना में सभी धर्मों को मानने वाले सैनिक कार्यरत हैं। कई दुर्गम पोस्ट पर मंदिर, मस्जिद और गुरूद्वारे साथ प्रतिस्थापित हैं। यह सांप्रदायिक सद्भाव की एक अनूठी मिसाल देता है। देश के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में जिस तरह से नक्सलियों को समाप्त करने के लिए सलवा जुडूम आंदोलन के तहत नागरिकों को प्रशिक्षित किया गया।

यही नहीं जम्मू - कश्मीर और अन्य आतंक प्रभावित क्षेत्रों में ग्राम रक्षा समितियां और दूसरे क्षेत्रों में नगर रक्षा समितियां बनाई गईं उसी तरह से हर नागरिक को सैन्य जीवन का अंशकालिक प्रशिक्षण देने से कई तरह की समस्याऐं हल हो सकती हैं। सैन्य प्रशिक्षण विविधताभरे देश को एकता के सूत्र में पिरो सकता है।

'लव गडकरी'

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