क्रोध से ही बनता है बुराइयों  का अचार या मुरब्बा
क्रोध से ही बनता है बुराइयों का अचार या मुरब्बा
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इस जगत में प्रत्येक प्राणी का अपना अपना कोई न कोई स्वभाव होता है. और वह अपने इस स्वभाव के मुताबिक ही अपने जीवन की शैली को आगे बढ़ाता है , हर किसी के जीने की प्रवृति अलग अलग होती है . मानव एक सामाजिक प्राणी है. उसे समाज में रहकर अपने इस स्वभाव के जरिये लोगों में सुख-दुःख बाँटने की प्रवृति होती है.

 हर किसी का अपना अलग-अलग स्वभाव होता है. कोई बहुत ही सरल, तो कोई क्रूर होता है. किसी को ज्यादा क्रोध आता है, किसी को कम, यह तो मानव की प्रकृति होती है. पर कई बार हम इस क्रोध को काबू में नहीं कर पाते जो आगे चलकर बड़ा ही नुकसान पहुंचाता है .जिस व्यक्ति ने क्रोध की भावना को अपने मन से निकाला है उसीने जीवन को संभाला है.

आपने संत पुरुषो को देखा ही होगा उन्हें कभी क्रोध नहीं आता है वे हमेशा शांत भाव से रहते है . क्रोध की भावना और क्रोध करना ये हमेशा मानव को नीचे गिराते है. इससे मानव आपसी संबधों में दरार उत्पन करता है . कई बार यह होता है. की हम क्रोध में इतने डूब जाते है. की अपना होश भी खो देते है. और किसी भी व्यक्ति को आवेश में आकर जाने क्या- क्या कह देते है.

और उससे बात नहीं करते या वह हमसे बात नहीं करता और इससे लम्बे समय तक हो सकता है. जीवन के लिए बुराइयां बन जाती है . यही बुराई ही आचार या मुरब्बा है .जो अधिक समय तक बना रहता है.जिस तरह तेल के साथ हम आम जैसे अनेकों फलों का आचार अधिक समय तक रख सकते है. उसी तरह यह क्रोध भी बैर का आचार या मुरब्बा बनाता है . 

मानव के स्वभाव में सरलता होनी चाहिए. आप क्रोध उत्पन्न न करें अपने स्वभाव से इसे निकाले और यदि यह आपके स्वभाव से नहीं जाता तो कम से कम इस क्रोध से किसी अन्य को दुखी न करें .उसकी आत्मा को ठेस न पहुंचाएं . संयमी व्यक्ति अक्रोध की स्थिति में होते हैं.

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