अस्पृश्यता को समाप्त करने में अंबेडकर बने जननायक

अस्पृश्यता को समाप्त करने में अंबेडकर बने जननायक
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इन दिनों संसद में असहिष्णुता और संविधान दिवस पर जमकर बहस हो रही है। पक्ष और विपक्ष द्वारा जमकर बवाल मच गया है। केंद्र सरकार द्वारा डाॅ. भीमराव अंबेडकर की स्मृति में संविधान दिवस मनाने की शुरूआत की गई। वह संविधान जिसे डाॅ. अम्बेडकर के ही साथ अन्य लोगों ने गढ़ा। उन महापुरूषों को स्मरण करने की बात कही गई। डाॅ. भीमराव अंबेडकर को लेकर भी सांसदों ने अपने विचार व्यक्त किए लेकिन क्या आप जानते हैं कि अंबेडकर कौन थे। ये व्यक्तित्व कौन थे।

दरअसल भारत रत्न डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष थे। उनका जन्म अस्पृश्य परिवार में हुआ था। 6 दिसंबर को अंबेडकर का निर्वाण हुआ। मगर वे जाते जाते अपने देश से अस्पृश्य का कलंक मिटाकर चले गए। जी हां, संविधान में जिस आरक्षण व्यवस्था की बात की जाती है। वह उन्हीं के अध्ययन का परिणाम है। बाबा साहेब डाॅ. अंबेडकर अध्ययन में भी निपुण थ। उन्हं संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के लिए भी चयनित किया गया।

उन्होंने जाति - उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास पर लेख भी लिखा। अंबेडकर अध्ययन के लिए ब्रिटेन भी गए। विश्वयुद्ध के दौरान उनकी नौकरी छूट गई। इसके बाद वे निजी ट्यूटर और लेखाकार के तौर पर कार्य करने लगे। उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। हिंदू राजनेताओं और जातीय भेदभाव से लड़ने को लेकर भी उन्होंने कार्य कया। अंबेडकर ने जाति व्यवस्था और छूआछूत के मसले पर मोहन दास करमचंद गांधी अर्थात् महात्मा गांधी के खिलाफ भी आवाज उठाई।

इस दौरान उनहोंने अस्पृश्य समुदाय को करूणा की वस्तु समझने का आरोप भी लगाया। 8 अगस्त 1930 को शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा। 1932 में वे सरकारी लाॅ काॅलेज के प्रधानाचार्य भी रहे। 1936 में आंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थाना की। वे संविधान के निर्माण के लिए संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष भी चुने गए। 

'लव गडकरी'

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