मर कर भी ना निकलेगी दिल से वतन की उल्फत!
मर कर भी ना निकलेगी दिल से वतन की उल्फत!
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मर कर भी ना निकलेगी दिल से वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए- वतन आएगी। 23 मार्च का दिन, भारतीय इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वाधीनता के लिए ब्रिटिश शासन से भगत सिंह, शिवराम राजगुरू और सुखदेव थापर ने अपने प्राणों को इस दिन देश के लिए समर्पित कर दिया। भारत माता के इन सपूतों ने भारतीय स्वाधीनता की थाली में इन सपूतों ने अपने प्राणों को सजाया। इन तीनों में सबसे लोकप्रिय रहे शहीद-ए-आजम भगत सिंह, पंजाब प्रांत के लायलपुर में सिख परिवार में 28 सितंबर 1907 को उनका जन्म हुआ था।

भगत सिंह भारतीय इतिहास के बड़े स्वाधीनता संग्राम सेनानियों में शामिल हैं। आजादी के प्रति दिवानगी इन्हें बचपन से ही मिली थी। इनके पिता गदर पार्टी के थे और वे स्वयं भी एक स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे। पंजाबी पृष्ठभूमि का होने के कारण ये साहसिक भी थे, यूं तो इनके जीवन पर गांधीवादी विचारों का प्रभाव था लेकिन बाद में इन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी एचआरए से जुड़कर क्रांति की नई शुरूआत की। 8 अप्रेल 1929 में उन्होंने अपने साथियों के साथ केंद्रीय विधायी सभा में इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया।

भगत सिंह ने वहां भारतीय स्वतंत्रता के पर्चे बिखेरे, वहीं खाली जगह पर बम भी फैंका। वे 14 वर्ष की आयु से ही क्रांतिकारी दलों के लिए कार्य करने लगे थे। इंटरमीडिएट करने के बाद वे लाहौर पहुंचे, तो कानपुर जाने का अवसर मिला तब वे गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए, वहां उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर क्रांतिकारी दल का पुनर्गठन करने का अवसर मिला, उनके द्वारा कानपुर के प्रताप में बलवंत सिंह के नाम से और दिल्ली में अर्जुन के संपादकीय विभाग में अर्जुन सिंह के नाम से कार्य किया, उनका संबंध नौजवान भारत सभा से भी रहा।

शिवराम हरि राजगुरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी थे। भगत सिंह और सुखदेव के ही साथ 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। शिवराम हरि राजगुरू का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को पुणे के खेडा में हुआ था, बड़ी छोटी आयु में ही ये वाराणसी पहुंच गए और संस्कृत का अध्ययन किया, वाराणसी में राजगुरू की भेंट कई क्रांतिकारियों से हुई, वे चंद्रशेखर आज़ाद से बेहद प्रभावित थे, बाद में वे उनसे जुड़े और सांडर्स मर्डर में उन्होंने अपनी भागीदारी की, वे भगतसिंह और सुखदेव के साथ थे।

सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था। भारत की स्वाधीनता के लिए उन्होंने बेहतरीन कार्य किया, भगत सिंह और राजगुरू के ही साथ 23 मार्च को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। उनके मन में बचपन से ही स्वाधीनता का सपना था। पंजाब के लायलपुर में श्री रामलाल थापर और श्रीमती रल्ली देवी के घर उनका जन्म हुआ। उनके ताउ ने उनके पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन किया। उन्होंने साडर्स मर्डर में राजगुरू का साथ दिया। इन तीनों ही शहीदों को 23 मार्च को अंग्रेजी सरकार ने फांसी दे दी। तभी से 23 मार्च का दिन इतिहास में जाना जाता है। 

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