अचला सप्तमी पर की जाती है इनकी पूजा, जरूर रखे व्रत
अचला सप्तमी पर की जाती है इनकी पूजा, जरूर रखे व्रत
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आप सभी को बता दें कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की अचला सप्तमी को पूरे साल की सप्तमी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ कहते हैं. इसी के साथ इसे रथ व भानु सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं इस दिन सात जन्म के पाप को दूर करने के लिए रथारूढ़ सूर्यनारायण की पूजा करते हैं और इस दिन सूर्य ने सबसे पहले विश्व को प्रकाशित किया था. इसी के साथ इस दिन यानी आज तेल व नमक का अवश्य त्याग कर देना चाहिए.

आप सभी को बता दें कि भविष्य पुराण में इस सप्तमी की बड़ी महिमा बताई जाए चुकी है और संभव हो तो सप्तमी तिथि की सुबह जब सूर्य देव की लालिमा फैल रही हो, तो नदी या सरोवर पर जाकर स्नान करना चाहिए. इसी के साथ इस सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्य की पूजा करके केवल मीठा भोजन या फलाहार करता है, उसे पूरे वर्ष सूर्य का व्रत व पूजा करने का पुण्य मिल जाता है और भविष्य पुराण के अनुसार, यह व्रत सौभाग्य, सुंदरता व उत्तम संतान देने वाला होता है.

अचला सप्तमी में किस देवता की पूजा की जाती है? - आप सभी को बता दें कि इससे जुडी एक कथा है तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. कथा अनुसार - एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा. मुनि ने कहा, ‘माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करो.' गणिका ने मुनि के बताए अनुसार व्रत किया. इससे मिले पुण्य से जब उसने देह त्यागी, तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया. इस व्रत में षष्ठी के दिन एक बार भोजन करें. सप्तमी की सुबह स्नान के पहले आक के सात पत्ते सिर पर रखें और सूर्य का ध्यान कर गन्ने से जल को हिला कर- ‘नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:. वरुणाय नमस्तेऽस्तु'- पढ़ कर दीपक को बहा दें. स्नान के बाद सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना लें. उसमें शिव और पार्वती को स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें. फिर तांबे के पात्र में चावल भर कर दान करें. जो लोग नदी में स्नान नहीं कर सकते, वे गंगा का स्मरण कर, गंगा जल डाल कर स्नान कर सकते हैं. सूर्य को दीपदान जरूर करना चाहिए.

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