मनुष्य के कर्मो के अनुसार ही मिलता है उसे इस प्रकार का जन्म
मनुष्य के कर्मो के अनुसार ही मिलता है उसे इस प्रकार का जन्म
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दोस्तों यह बात तो सभी जानते है की इस संसार में जो जैसा कर्म करता है वो वैसा ही फल पाता है चाहे वह मनुष्य हो या अन्य कोई भी प्राणी, अच्छा कर्म करने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और बुरे कर्म करने वाले को नरक में जाना पड़ता है. यदि मनुष्य पाप या पुण्य का काम करता है तो उसके पुण्य और पाप उसके पीढ़ी पर भी लगता है, ऐसे ही आज हम कुछ पाप और पुण्य के बारे में कथा बताने जा रहे है वो इस प्रकार है-

गर्मी का दिन चल रहा था, एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बुरु के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक प्याऊ से पानी पिया और पीपल के पेड़ के नीचे छाया में बैठे ही थे कि अचानक एक कसाई वहां से 25-30 बकरों को लेकर गुजरा उनमें से एक बकरा पास ही की एक दुकान पर घास खाने के लिए दौड़ पड़ा, वह दुकान शहर के मशहूर सेठ शागाल्चंद सेठ की थी, दुकानदार का बकरे पर ध्यान जाते ही उसने बकरे के कान पकड़कर बकरे को खूब मारा, बकरा चिल्लाने लगा, लेकिन दूकानदार को फिर भी उस बकरे पर रहम नहीं आई तो उसने बकरे को पकड़कर कसाई को दे दिया और कहा कि जब तू इस बकरे को काटेगा तो इसका सिर मुझे दे देना क्योंकि इसने मेरी सारी घास खा गया है.

देवर्षि नारद ने बकरे का घांस खाने का कारण जानने के लिए जरा-सा ध्यान लगा कर देखा और वह जोर से हंस पड़े, तुम्बुरु पूछने लगा, ‘‘गुरुजी! आप क्यों हंसे?  उस बकरे को जब मार पड़ रही थी तो आप दुखी हो गए थे, किन्तु ध्यान करने के बाद आप हंस रहे हो, इसमें क्या रहस्य है?’’
 
नारद जी ने कहा, ‘‘यह तो सब कर्मों का फल है। इस दुकान पर जो नाम लिखा है वह ‘शागाल्चंद सेठ की है’, और वह बकरा शागाल्चंद सेठ है, उसे अपने कर्मो के अनुसार उसे बकरे का रूप मिला है, और यह दुकानदार शागाल्चंद सेठ का ही पुत्र है, सेठ मरकर बकरा बना इसलिए दुकान से अपना पुराना सम्बन्ध समझकर घास खाने गया था और यह देख उसके बेटे ने ही उसको मारकर कसाई के पास दे आया.
 
मैंने देखा की 30 बकरों में से कोई दुकान पर नहीं गया इस बकरे का पुराना संबंध था इसलिए यह गया, जिस बेटे के लिए शागाल्चंद सेठ ने इतना कमाया था, वही बेटा उसे घास खाने नहीं देता और गलती से खा भी लिया है तो उसने बकरे को मारा और उसे कसाई के पास दे आया और ऊपर से बकरे का सिर मांग रहा है यह सब उसके पिता की यह कर्म गति है मुझे तो  मनुष्य के मोह माया पर हंसी आ रही है.

 

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