भारत का संविधान विभिन्न देशों में व्याप्त लोकतांत्रिक प्रणाली और वहां विभिन्न मसलों पर दिए गए प्रावधानों के विश्लेषण, मनन और चिंतन के विमर्श के बाद तैयार किया गया है। हमारे संविधान को अंगीकार करते समय हमने हमारी संस्कृति को ध्यान में रखा गया मगर संविधान की रचना करने के लिए हम दूसरे देशों के प्रावधानों पर इतने आश्रित हो गए कि हमने हमारी संस्कृति की न्यायसुलभ प्रणाली को दूर हटा दिया। हालांकि हमारा संविधान लिखित और वृहद है। जिसमें हर भारतीय विश्वास रखता है।
लड़खड़ा रहे लोकतंत्र के पाये
मगर लोकतंत्र के जो आधार बताए गए हैं वे चारों ही आज लड़खड़ा रहे हैं। जिसकारण लोकतंत्र का पाया कुछ कमजोर नज़र आ रहा है। न्यायपालिका ऐसी व्यवस्था से गुजर रही है जहां न्याय पाने में लोगों को विलंब का सामना करना पड़ता है। यही नहीं न्यायिक प्रावधान इतने जटिल हैं कि इसे समझ पाना आम आदमी के बस की बात नहीं है। हालांकि अब विशेष मामलों में फास्ट ट्रेक कोर्ट और लोक अदालतों द्वारा व्यक्ति को न्याय दिए जाने का कार्य किया जाता है मगर इस तरह की न्यायप्रणाली विकसित किए जाने के बाद भी 6.56 लाख प्रकरण पेंडिंग हैं। जिसकारण लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।
सेलेब्स का ध्यान
जब न्यायालयों में प्रकरण किसी सेलिब्रिटी से जुड़ा हो तो उस पर अपेक्षाकृत रूप से सुनवाई पर अधिक ध्यान दिया जाता है और इन प्रकरणों में परिणाम भी उम्मीद से अलग होते हैं। यदि बात मुंबई न्यायालय द्वारा हाल ही में सलमान खान को लेकर दिए गए निर्णय को लेकर की जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि सलमान मामले में न्यायालय ने फास्टट्रेक रूख अपनाया। यही नहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता के मसले पर भी कर्नाटक हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के निर्णय पर जल्द फैसला सुनाया।
मगर जब बात आम आदमी को व्यवस्था में न्याय सुलभ होने की बात की जाती है तो इसमें कई वर्ष लग जाते हैं, जिसके चलते आम आदमी न्यायिक प्रक्रिया में उलझने से ही बचने लगा है। हालांकि सलमान खान के मामले में निर्णय लेने के लिए न्यायालय ने सभी पक्षों की दलीलें सुनी और इस मामले में सलमान के अच्छे बर्ताव पर भी गौर किया। यही नहीं वर्ष 2002 से लेकर अब तक इस मामले में कई साल बीत चुके थे। न्यायालय को अपना निर्णय सुनाने के लिए इन बातों का भी ध्यान रखना था।
सलमान मसले के साथ अन्य मसले उठाकर यहां हम न्यायिक प्रक्रिया की दुर्भावनावश समीक्षा नहीं कर रहे हैं, और न ही इसका उद्देश्य भारतीय न्याय व्यवस्था के प्रति अविश्वास विकसित करना है। मगर जिस तरह से सलमान खान के मसले पर सेशन कोर्ट द्वारा 5 वर्ष की सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें उच्च न्यायालय ने बेल दे दी। उससे सलमान खान को तुरंत राहत मिलती नज़र आई लेकिन पीडि़त पक्ष कथिततौर पर यही कहता रहा कि उन्हें अभी भी न्याय नहीं मिला। यदि सलमान को सजा भी जो जाती है तो यह उनके साथ न्याय नहीं होगा। ऐसे में पीडि़तों ने रोजगार की मांग की है।
करना पड़ रहा है इरोम शर्मिला को लम्बा इंतज़ार
मगर ऐसे कई मामले हैं जिनमें लोगों को न्याय पाने में काफी संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे ही मामलों में शामिल है इरोम चानू शर्मिला का मामला। जी हां, बीते 16 वर्षों से अनशन पर अड़़ी हुईं इरोम शर्मिला की मांग सरकार नहीं मान रही। इरोम चानू शर्मिला क्षेत्र से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अर्थात् अफस्पा को हटाने की मांग कर रही हैं मगर सरकार इस बात पर ध्यान नहीं देती।
कई वर्षों से इरोम को तबियत बिगड़ने के बाद अस्पताल में दाखिलकर आत्महत्या करने का केस चलाया जाता है। 42 वर्षीय इरोम शर्मिला को न तो सरकार से राहत मिल पा रही है और न ही न्यायिक प्रक्रिया उनकी मांग पर ठोस उपाय सूझा पा रही है। हालांकि इसी वर्ष जनवरी माह में इंफाल की अदालत ने उन्हें राहत देते हुए उनके खिलाफ चल रहे केस में रिहाई का आदेश दिया। मगर 5 नवंबर 2000 से आमरण अनशन पर बैठी इरोम के लिए यह राहत नाकाफी है। इन वर्ष बाद उन्हें केवल राहत ही मिल पाई है।
अटकी है लोगों की गाढ़ी कमाई
यदि ताजा मामले में चर्चा करें तो सहारा प्रमुख सुब्रत राॅय सहारा के मामले में भी न्यायिक प्रक्रिया काफी लंबी रही। सहारा श्री के जेल में रहते हुए भुगतान को लेकर पहले तो सुविधाऐं बढ़ाई गईं इसके बाद उन्हें 10000 करोड़ रूपए नकद और बैंक गारंटी के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया गया है।
जिस पर बीते शुक्रवार को सुनवाई होनी थी लेकिन मामले में कोई सुनवाई नहीं हो सकी। निवेशकों ने अपनी गाढ़ी कमाई से सहारा समूह में निवेश किया और अब न्याय की लंबी प्रक्रिया से उन्हें गुजरना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा निवेशकों के 24000 करोड़ रूपए नहीं लौटाने के मामले में सुब्रत राय सहारा को जेल में रहते हुए निवेशकों की राशि का प्रबंध करने के निर्देश दिए गए।
न्यायिक प्रक्रिया में इस तरह के विलंब और न्याय सुलभ प्रणाली को लेकर आम आदमी के मन में घर करती टीस को लेकर व्यापक मंथन करने की जरूरत है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कानूनों की समीक्षा कर इनमें बदलाव के समर्थन में बोलते देखे गए हैं। देश में ऐसे पुराने अधिनियमों - कानूनों को समाप्त करने की जरूरत है जो अब आम आदमी के लिए काम के नहीं हैं। इस तरह से देश के आम नागरिक को प्रायौगिक तौर पर न्याय प्रदान कर भारतीय न्याय व्यवस्था में उसका विश्वास बढ़ाए जाने की दरकार है।