आप भी जान लें आखिर कहाँ से हुई सूर्यदेव को जल अर्पित करने की शुरुआत
आप भी जान लें आखिर कहाँ से हुई सूर्यदेव को जल अर्पित करने की शुरुआत
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हिन्दू धर्मं में सूर्य पूजा का बहुत महत्व है यदि व्यक्ति प्रतिदिन सूर्योदय के पूर्व उठकर सभी क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान आदि करने के पश्चात सूर्यदेव को जल चढ़ाता है तो उसे उसको जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती है. इस विषय में हिन्दू वेद एवं पुराणों में भी कहा गया है. आइये जानते है की सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय व्यक्ति को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

सूर्य मन्त्र का उच्चारण 
जब भी आप सूर्यदेव को जल अर्पित करते है तो उनके मन्त्र ॐ सूर्याय नमः का जाप करना चाहिए इससे व्यक्ति के जीवन में धन सौभाग्य ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा वह लंबी आयु प्राप्त करता है. सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय आप जिस पात्र में जल ले रहें है वह तांबे का होना चाहिए तथा उस जल में लाल फूल अक्षत और अष्टगंध डालना न भूलें.

सूर्यदेव को जल चढ़ाने का तर्क 
सूर्य देव को जल चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार मंदेहस नाम के एक असुर ने जो अरुणम द्वीप पर रहता था ब्रम्हा जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रम्हा जी ने उसे वर मांगने को कहा और उस असुर ने सूर्यदेव को बंदी बनाने का वरदान प्राप्त किया और सूर्यदेव को बंदी बना लिया.

जिससे समस्त पृथ्वी पर अन्धकार छा गया और इस अन्धकार के कारण सभी लोग भयभीत हो गए. इस स्थिति को देखकर ब्रम्हा जी ने इसका उपाय ब्राम्हणों को बताया और कहा की वह सुबह गायत्रीमंत्र के उच्चारण के साथ सूर्यदेव को जल अर्पित करें. इससे सूर्यदेव उस असुर के बंधन से मुक्त हो जायेंगे. तभी से ऐसी मान्यता है की कहीं पुनः मंदेहस असुर सूर्यदेव को बंदी न बना ले इसलिए उन्हें प्रतिदिन जल अर्पित किया जाता है.

 

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