जो धारण किया जाये वह धर्म
जो धारण किया जाये वह धर्म
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धर्म भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' धब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं - कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्गुण आदि।

धर्म संस्कृत भाषा का शब्द हैं जो कि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं।

"धार्यते इति धर्म:"
अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्धति हैं वह धर्म हैं। जैमिनी मुनि के मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र में धर्म का लक्षण हैं लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म का लक्षण कहलाता हैं। वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में भी आया हैं। जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि का धर्म हैं और प्रजा का पालन और रक्षण राजा का धर्म हैं महाभारत में भी लिखा हैं -

धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा:
अर्थात जो धारण किया जाये और जिससे प्रजाएँ धारण की हुई हैं वह धर्म हैं।

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