मौत के सामने यूं हंसते रहे तेगबहादुर
मौत के सामने यूं हंसते रहे तेगबहादुर
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सिख जिनके धर्म में पंज प्यारे हुए। खालासा हुए और अपने शस्त्रों के माध्यम से इन सिखों ने बलिदानों का अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किया। ऐसे ही सिखों में सिखों के गुरूओं ने भी अपना योगदान दिया है। जहां गुरू गोविंद सिंह जी ने नारा दिया था चिड़ियां नाल छे बाज लड़ावां तां गोविंद सिंह नाम धरावां वहीं सिखों के 9 वें गुरू, गुरू तेगबहादुर ने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपनी जान को यूं ही कुर्बान कर दिया।

गुरू तेगबहादुर ने तो मुस्लिम शासक औरंगजेब के अत्याचारों के खिलाफ खड़े लोगों को संबल दिया था। दरअसल गुरू तेग बहादुर सिंह का जन्म 18 अप्रैल 1621 में हुआ था। वे इतिहास में जाने जाते हैं। उन्होंने न केवल सिखों के आदर्शों की रक्षा के लिए बल्कि हिंदूओं की रक्षा के लिए भी अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। उन्हें सिखों का 9 वां गुरू 20 मार्च 1664 को बनाया गया था। इसके बाद वे 24 नवंबर तक गुरू गादी पर आसीन रहे।

गुरू तेग बहादुर जी गुरू हरगोविंद सिंह जी की पांचवीं संतान थे। जब 8 वें गुरू और इनके पोते हरिकृष्ण राय की मृत्यु हो गई तो जनमत के माध्यम से उन्हें 9 वां गुरू बनाया गया। उन्होंने केवल 14 वर्ष की अवधि में ही मुसलमानों के विरूद्ध युद्ध लड़ा। गुरू तेग बहादुर ने 20 वर्षों तक साधना में लीन रहे। इसके बाद उन्होंने धर्म प्रसार के लिए भ्रमण किया। इतना ही नहीं उन्होंने आनंदपुर साहब, कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए खियाला की यात्रा की।

वे दमदमा साहब होते हुए कुरूक्षेत्र पहुंचे। यहां पर उन्होंने उपदेश दिए। औरंगजेब के शासनकाल में एक वाकये ने डन्हें औरंगजेब के सामने खड़ा कर दिया। दरअसल एक पंडित हर दिन औरंगजेब के यहां गीता सुनाने जाता था। मगर एक दिन उसकी तबियत ठीक नहीं थी तब उसका बेटा वहां गया और उसने औरंगजेब को पूरी गीता सुना दी।

औरंगजेब गीता सुनकर प्रभावित तो हुआ लेकिन उसने पंडित से इस्लाम स्वीकारने की बात कही। पंडित और उसका बेटा बाद में परेशान होकर गुरू तेग बहादुर के पास पहुंचे और उन्होंने उनसे इस मामले में कुछ करने के लिए कहा। गुरूतेग बहादुर ने कहा कि औरंगजेब से कह दीजिए कि यदि गुरू तेगबहादुर ने इस्लाम स्वीकर कर लिया तो फिर मैं भी इस्लाम स्वीकार कर लूंगा।

जब गुरू जी औरंगजेब के पास पहुंचे तो उसने उन्हें तरह-तरह का लालच दिया। गुरू तेग बहादुर नहीं माने मगर उन पर अत्याचार किए गए ऐसे में उन्हें जेल में डाल दिया गया। उनके शिष्यों को मार दिया गया। मगर वे नहीं माने। उन्होंने कहा कि जबरन धर्म स्वीकार करवाना इस्लाम नहीं है। ऐसे में औरंगजेब गुस्सा हो गया और उसने दिल्ली के चांदनी चैक में गुरू तेग बहादुर का सिर काटने का आदेश दे दिया। उन्होंने 24 नवंबर 1675 को अपना बलिदान दे दिया। उन्होंने लेखन कार्य भी किया उन्हेंने साखी की रचाना की। उन्होंने देश की सर्वधर्म समभाव की संस्कृति को बढ़ा दिया।

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