सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने का चलन
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने का चलन
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दिल्ली : अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एक अहम् फैसला सुनाते हुए रोक लगा दी.जिसका मोदी सरकार के दो मंत्रियों रामदास अठावले और रामविलास पासवान ने खुलकर विरोध किया और लोक जनशक्ति पार्टी ने बुधवार को इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल कर दी है. कोर्ट के इस फैसले को लेकर दलित समाज में आक्रोश है और कई राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन भी किया जा रहा है. गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद 2015 में संशोधन लाकर इस कानून को सख्त बनाया था. 2016 को गणतंत्र दिवस के दिन से संशोधित एससी-एसटी कानून लागू किया गया था. दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों में कमी नहीं देखी जा रही थी इसलिए साल 1989 में इस कानून को बनाया गया था. जस्टिस एके गोयल और उदित यू ललित की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एससी/एसटी एक्ट से जुड़े मामलों में अब खुले मन से सोचने की जरूरत है. अगर किसी मामले में गिरफ्तारी के अगले दिन ही जमानत दी जा सकती है तो उसे अग्रिम जमानत क्यों नहीं दी जा सकती? बता दें कि इसी पीठ ने जुलाई 2017 में एक फैसला सुनाते हुए दहेज निरोधक क़ानून के दुरूपयोग पर भी चिंता जाहिर की थी और कहा था कि आरोपों की पुष्टि के बगैर कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए. तब भी इन दोनों ने निर्देश जारी करते हुए कहा था कि मुकदमे के दौरान हर आरोपी की अदालत में उपस्थिति अनिवार्य नहीं होनी चाहिए और अधिकतर शिकायतें वाजिब होती ही नहीं हैं. एससी/एसटी एक्ट वाले मामले में भी कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. फैसले के मुताबिक सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है और जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से ही हो सकेगी. इसके अलावा 'जातिसूचक शब्द' इस्तेमाल करने के आरोपी को जब मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए.
कौन हैं जस्टिस उदय यू ललित और एके गोयल
जस्टिस उदय यू ललित के खाते में बतौर वकील कई सारे मशहूर केस दर्ज हैं. ललित ने ही बीजेपी प्रेजिडेंट अमित शाह के लिए तुलसी प्रजापति एनकाउंटर में केस लड़ा था. जस्टिस ललित ने सलमान खान के लिए काला हिरन केस, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह पर दायर भ्रष्टाचार के केस, अभी-अभी बीजेपी से कांग्रेस में आ गए नवजोत सिंह सिद्धू के लिए मर्डर केस, हवाला कारोबारी हसन अली के लिए मनी लॉन्डरिंग केस, सरकार की तरफ से 2जी घोटाले जैसे मामलों में अपनी वकालत का हुनर दिखाया है. वही जस्टिस गोयल की बात करें तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने साल 1999 में सीनियर वकील के तौर पर नियुक्ति दी थी. दो साल बाद उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में जज नियुक्त किया गया. दिसंबर 2011 में जस्टिस गोयल को गुवाहाटी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया और अक्टूबर 2013 में उनका तबादला उड़ीसा हाई कोर्ट में किया गया था.

नई गाइडलाइंस
ऐसे मामलों में निर्दोष लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा. सबसे पहले शिकायत की जांच डीएसपी लेवल के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी. यह जांच समयबद्ध होनी चाहिए. जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक न हो. डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करने के आरोपी को जब मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अफसरों को विभागीय कार्रवाई के साथ अदालत की अवमानना की कार्रवाही का भी सामना करना होगा.

हालांकि देश भर के पुलिस स्टेशन और अदालतों में दहेज़ और एससी/एसटी एक्ट के दुरूपयोग के अनगिनत मामले सामने आये है और समय समय पर इनकी शिकायतों को देखते हुए कोर्ट ने ये अहम फैसले किये है.  

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