होली मनाने का पौराणिक कारण
होली मनाने का पौराणिक कारण
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धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश भारत अपने अंदर करोड़ो लोगों की लाखों रीतिरिवाजों के हजारों त्योहारों और बहुमूल्य परम्पराओं को समेटे हुए है. इस देश का महान इतिहास इसकी धरोहर है और इस धरोहर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इसकी धार्मिक भावनायें और तीज त्यौहार. भारत मे हर दिन एक उत्सव का दिन होता है, हर सौं दो सौं किलोमीटर पर भाषा संस्कृति के परिवर्तन के साथ धार्मिक परिपाटियाँ भी बदली हुई मिल जाती है, फिर भी इस देश मे कुछ त्यौहार ऐसे है जिनका महत्व कभी कम नहीं होता और जिन्हे समूचा भारतवर्ष एक साथ मनाता है.

ऐसा ही एक त्यौहार है होली. सभ्यता के उत्थान के बाद से ही होली मनाई जाती रही है. फाल्गुन मास की पूर्णमासी के दिन मनाया जाने वाला मस्ती और रंगो से सराबोर ये त्यौहार अपनी हुल्ल्ड़ता और मौज मस्ती के कारण भारतवासियों का पसंदीदा त्यौहार है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्त प्रह्लाद जो की राक्षस कुल के राजा हिरण्यकश्यप के यहाँ पैदा हुए थे और परम विष्णु भक्त थे , उनकी विष्णु भक्ति से क्रोधित उनके पिता ने उन्हें मारने के कई प्रयास किये मगर ईश्वरीय कृपा के चलते पिता हर बार नाकाम रहे. अंततः उन्होंने अपनी राक्षसी बहन होलिका जिसे वरदान था कि अग्नि का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और वो नित्य अग्नि से स्नान कर सकती थी, को आदेश दिया की तुम प्रह्लाद की बुआ हो इसे अपनी गोद मे बैठाकर अग्निस्नान करो जिससे इसकी मृत्यु हो जाये.

महाराज के आदेश पर प्रह्लाद की बुआ होलिका ने वैसा ही किया, मगर परम पिता परमेश्वर की कृपा से विष्णु भक्त प्रह्लाद को अग्नि नहीं जला सकी और वरदानी होलिका का दहन हो गया. उसी दिन से आज तक होलिका दहन और बाद मे उसका पर्व रंगो के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि ब्रज की होली के दौरान श्रीकृष्ण ने रंगो से भरी होली खेली जिसके बाद से इस पर्व को रंगो के त्यौहार के रूप मे बड़े हर्षोउल्लास से मनाया जाता रहा है.

होली पर भूलकर भी ना करें ये गलतियां

हर्षोल्लास का त्यौहार होली

खुद को रखना हो सुरक्षित तो खेले प्राकृतिक रंगों से होली

 

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