गुजरात में ऊँट किस करवट बैठेगा ?
गुजरात में ऊँट किस करवट बैठेगा ?
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आज गुजरात चुनाव के प्रथम चरण के मतदान हो रहे है, कुल 19 जिलो की 89 सीटों के लिए मतदान हो रहा है जिसमे दक्षिण गुजरात के 7 जिले, सोराष्ट्र के 11 जिलो में मतदान हो रहा है.  जिसमे की 48 विधानसभा सीट है, कच्छ जिले में 6 विधानसभा सीट पर मतदान किया जा रहा है, साथ ही अन्य सीटों पर भी मतदान जारी है. सुबह से ही मतदाता लाइन में लगे है. और राजनितिक पार्टिया अपने-अपने कयास लागने में लगी है लेकिन, यह जनता है यह उस ऊंट की तरह है जो कि किस करवट बेठेगा यह किसी को नही पता है.

हलाकि दोनों राजनेतिक दलों ने अपने-अपने स्तर पर हर संभव प्रयास जनता को लुभाने के लिए किया है. विकास के मुद्दे पर शुरू हुआ गुजरात का चुनाव प्रचार जिसमें पहले विकास पगला गया और इस प्रचार के अंत में विकास धार्मिक बन गया है. अब गुजरात के लोग पगला गए विकास को वोट देते हैं या धार्मिक विकास को देते हैं यह तो 18 दिसंबर को परिणाम के दिन ही पता चलेगा. गुजरात के चुनाव प्रचार में इस बार बहुत सारी चीज़ें नई और आश्चर्यजनक थीं. कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के मामले में आगे बढ़ती दिखी तो भाजपा ने भी विकास के मुद्दे को परे रखकर आख़िर में राम मंदिर, तीन तलाक़ जैसे मुद्दे उठाने की कोशिश की. वही भाजपा ने इस बात का भी प्रचार किया कि कांग्रेस ने गुजरात और गुजरात के नेताओं के साथ अन्याय किया है, जैसी बातों को लेकर मंच पर है लेकिन पिछले दो दिनों की बात की जाए तो मणिशंकर अय्यर के बयान के बाद कोंग्रेस जरुर परेशान नजर आ रही है. वहीं बीजेपी इस मुद्दे को पूरी तरह से भुनाती  हुई नजर आई, मोदी ने भी इस बयान को आगे बढ़ाते हुए 2004 चुनाव के बाद मणिशंकर अय्यर की पाकिस्तान जाने वाली बात भी जनता को याद दिला दी. जिसके बाद चुनावी मुद्दों में पाकिस्तान भी शामिल हो गया. 

इस चुनाव में गुजरात विधानसभा के पिछले 13 चुनावों से हटकर प्रचार देखने को मिला, कांग्रेस ने अपनी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण वाली छवि तोड़कर सॉफ्ट हिंदुत्व का मार्ग अपनाया उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी प्रचार के दौरान बहुत सारे मंदिर भी गए. कांग्रेस ने शहरी मध्यम वर्ग और ग्रामीण वर्ग के साथ हिंदुत्व के मुद्दे पर अपने आप को जोड़ने की कोशिश की है. वहीं भाजपा ने उसके चुनावी प्रचार की शुरुआत विकास की बातों से की लेकिन उनका विकास समाज के आख़िरी छोर तक नहीं पहुंचा इसलिए लोगों में इस बात का प्रभाव ज़्यादा नहीं देखने को मिला इसलिए शुरुआत के 10 दिन के विकास आधारित प्रचार के बाद भाजपा भी हिंदुत्व के मुद्दे पर मुड़ गई और आख़िरकार उनका विकास धार्मिक बन गया. उन्होंने आगे कहा कि गुजरात घटना परस्त राज्य है, यहां होने वाली बड़ी घटनाओं का असर लोगों के दिलो दिमाग़ पर रहता है. इसीलिए 2015 में शुरू हुआ पाटीदार अनामत आंदोलन इस चुनाव में पाटीदारों को भाजपा के ख़िलाफ़ कर रहा है. चुनाव के प्रचार में विकास के मुद्दे को भाजपा मानती होगी पर गुजरात नहीं मानता. भाजपा ने उसके विकास के मुद्दे के बदले 1979 में मोरबी में हुई तबाही पर इंदिरा गांधी ने मुंह पर रुमाल रखा था ऐसे मुद्दे भी उठाए जिसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले.

भाजपा को उसके प्रचार में विकास पगला गया है उस ट्रेंड का विरोध करना पड़ा क्योंकि उसका गुजरात मॉडल दांव पर लगा हुआ है. एक तरफ़ उन्हें गुजरात में सचमुच विकास हुआ है यह बात साबित भी करनी है और दूसरी तरफ़ कांग्रेस वही पुरानी, दागी और भ्रष्टाचारी कांग्रेस है यह भी साबित करना है. भाजपा का चुनाव प्रचार विकास के मामले में बचाव की भूमिका में रहा. मगर और मुद्दे पर जब वह आक्रामक बनने गए तब अज्ञात कारणों की वजह से उनका आक्रामक प्रचार लोगों तक पहुंचा ही नहीं. पिछले एक महीने में भाजपा ने 15-20 बार अलग-अलग मुद्दों को आक्रामकता से उछालने की कोशिश की लेकिन एक भी मुद्दा लोगों के बीच उनके पक्ष में लहर नहीं पैदा कर पाया, जो कि पिछले चुनावों से अलग है. पहले के चुनावों में भाजपा एक मुद्दा रखती थी जिससे वह लोगों में एक लहर पैदा होती और उस लहर पर सवार होकर चुनाव का परिणाम तय हो जाता. इस बार ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है और यह इस चुनाव में भाजपा के प्रचार की असफ़लता को दिखाता है.

सोशल मीडिया और प्रचार दोनों में भाजपा का पलड़ा हमेशा भारी माना जाता था जो इस बार नहीं दिख रहा है. उधर कांग्रेस जो पहले लोगों की समस्याओं की बात नहीं करती थी उसके प्रचार के वीडियों में वह लोगों के मुद्दे उठा रही है जिसमें गुजरात की अस्मिता से लेकर बेरोज़गारी, महिलाओं की सुरक्षा जैसे हर प्रकार के मुद्दे भी शामिल हैं. राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ़ गए हैं. वह अभी बहुसंख्यकों को ध्यान में रखकर बात करते हैं जो पहले भाजपा करती थी. जो मुसलमान सालों से कांग्रेस के वफ़ादार मतदाता रहे हैं राहुल प्रचार के लिए मंदिर गए तो मस्जिद क्यों नहीं गए इसके अलावा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय जादूगरों के द्वारा चुनाव प्रचार किया था और वही प्रयोग गुजरात में भी किया है. अब देखना यह है कि यह प्रयोग गुजरात के कम आय वाले वर्गों में कितना सफ़ल होता है. भाजपा ने भी जीएसटी और नोटबंदी जैसे विवादास्पद निर्णय और महंगाई के मुद्दे में बचाव का प्रयास नहीं किया है. भाजपा अभी गुजरात और गुजराती के मुद्दे को उठा रही है. सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों में से कोई भी पार्टी इस बार सांप्रदायिकता की बात नहीं कर रही है.

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