सशक्त बनकर उभर रहा 67 वर्ष का लोकतंत्र
सशक्त बनकर उभर रहा 67 वर्ष का लोकतंत्र
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भारत के गणतंत्र को 66 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। अब भारत उस दौर से काफी अलग समय में आ चुका है। देश की लोकतांत्रिक विरासत बेहद समृद्ध हो चुकी है। अब व्यक्ति को अपना मताधिकार प्रयोग समझ में आने लगा है। हर नागरिक जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य पूरा करता है। यही नहीं देश का लोकतंत्र काफी मजबूूत स्थिति में है। न केवल वोट देने की बात है। जनता को कई ऐसे अधिकार हैं जो सही मायने में सुलभ हैं। सबसे बड़ी बात है।

गणतंत्र के 66 बरस के सफर में नागरिकों तक कई तरह की सुविधाऐं पहुंच पा रही हैं। यदि कहा जाए तो लोकतंत्र अब काफी अच्छी स्थिति में है। जिस तरह से बिहार चुनाव में जनता ने अपना मत प्रकट किया वह लोकतंत्र की शक्ति को दर्शाता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को कमजोर जनाधार मिला।

जिसके कारण प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व उभरकर आया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार से लोगों को काफी उम्मीदें बंधी थीं हालांकि अभी इस सरकार को अपने कार्यकाल में अधिक समय नहीं हुआ है लेकिन लोगों को इस सरकार से विकास की उम्मीदें अभी भी लगी हैं।

जनता अब विकास के पायदान पर आगे बढ़ना चाहती है। हालांकि अभी भी दबंग और दलित की बात की जा रही है। तो दूसरी ओर सांप्रदायिक तनाव कई क्षेत्रों में हावी है। ऐसे में असहिष्णुता का मसला छाने लगा है मगर इतने वर्ष बीत जाने के बाद अब निराशा के बादल छंट चुके हैं।

ऐसा नहीं है कि अब कोई समस्या नहीं है लेकिन सशक्त लोकतांत्रिक गणराज्य विश्व में अपनी एक जगह बना चुका है। अब भारत संयुक्त राष्ट्र में कुछ कहता है तो उसे गंभीरता से लिया जाता है। भारत कई वैश्विक मसलों पर संप्रभुता बनाए रखे हुए हैं। भारत के नागरिक अब पहले से बेहतर हालात में हैं। यदि कहीं असहिष्णुता का मसला होता है तो विरोध में स्वर भी तेज़ हो जाता है।

लोकतंत्र में इस वर्ग की बात भी सुनी जाती है, हालांकि इस मसले पर राजनीतिक छींटाकशी जरूर होती है लेकिन अब जनता समझदार हो चुकी है वह अयोध्या मसला, असहिष्णुता को सहजता से नहीं लेती उसे अब सरोकार है तो विकास से। जनता के रवैये से यह स्पष्ट हो गया है कि जनता स्वार्थ की राजनीति में फंसना नहीं चाहती। ऐसे में राजनीतिक स्वार्थ को वह भलींभांती समझकर ही अपने प्रतिनिधि का चुनाव करती है।

भारत के लोकतंत्र को निर्वाचनों में नोटा के प्रयोग और शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कार्य ने और मजबूत बनाया है। नक्सली क्षेत्रों और आतंक प्रभावित क्षेत्रों में हुए अधिक मतदान इस बात के संकेत हैं। भारत का नागरिक अब स्वाधीन है। हां भारतीय अभी अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कुछ पीछे हैं लेकिन उनमें जागृति विकसित हो रही है। जिससे वे अधिकारों को समझ रहे हैं। 

'लव गडकरी'​

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