जानिये सूर्य ग्रहण से जुडी धार्मिक, वैज्ञानिक और ज्योतिषीय मान्यताएं
जानिये सूर्य ग्रहण से जुडी धार्मिक, वैज्ञानिक और ज्योतिषीय मान्यताएं
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वैज्ञानिक, धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सूर्य ग्रहण का महत्त्व बहुत ज्यादा है। वैज्ञानिक नजरिए से बात करें तो सूर्य ग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है। जबकि धार्मिक और ज्योतिष के दृष्टिकोण से देखा जाए तो सूर्य ग्रहण का व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण लगना अशुभ रहता है। गुरुवार 26 दिसंबर को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। चलिए जानते हैं ग्रहण का वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व।

वैज्ञानिक नजरिए से जानते हैं कैसे लगता है सूर्य ग्रहण
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करता है हालाँकि चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर घूमती है। पृथ्वी और चंद्रमा घूमते-घूमते एक समय पर ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनो एक सीध में रहते हैं। जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाती है और वह सूर्य को ढ़क लेता है तो इसे सूर्य ग्रहण कहते हैं।

ग्रहण की धार्मिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ। वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा।

देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को ऐसा करते हुए देख लिया। इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन उस दानव ने अमृत को गले तक उतार लिया था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। इसलिए राहु केतु सूर्य और चंद्रमा का ग्रास कर लेते हैं। इस स्थिति को ग्रहण कहा जाता है। 

ग्रहण को क्यों अशुभ कहा जाता है 
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक ग्रहण के समय हमारे देव कष्ट में होते हैं और राहु ब्रह्मांड में अपना पूरा जोर लगा रहा होता है, इसलिए ग्रहण को देखने से विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। अगर किसी की कुंडली में राहु- केतु बुरे भाव में जाकर बैठ जाता है तो उसको जीवन में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सूर्य और चंद्रमा भी इसके प्रभाव से नहीं बच पाते है। 

 

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