बैंकों के बीस फीसदी कर्ज को दबाए बैठे हैं सौ बड़े कर्जदार
बैंकों के बीस फीसदी कर्ज को दबाए बैठे हैं सौ बड़े कर्जदार
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नई दिल्ली : आमतौर पर गरीबों का खाता खोलकर उन्हें थोड़ा बहुत उधार देने में आनाकानी करने वाले बैंक बड़े पूंजीपतियों को खैरात की तरह लोन बांटते हैं. इन बड़े लोगों को दिया गया लोन ही अब बैंकों की गले की फांस बन गया है. कुछ बड़े कर्जदारों की वजह से बैंकों पर बढ़े कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. बैंकों के कुल फंसे कर्ज का 20 प्रतिशत 100 बड़े कर्जदार ही दबाए बैठे हैं, अगर यह वसूली हो जाए तो बैंकों की वित्तीय स्तिथि में सुधार आ जाए, लेकिन यह कर्ज बढ़ता ही जा रहा है.

रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार कुल कर्ज में बड़े कर्जदारों की हिस्सेदारी सितंबर 2015 में जहाँ 56 .8 प्रतिशत थी जो मार्च 2016 में 58 प्रतिशत हो गई. बैंकों के सकल एनपीए (फंसे कर्ज) में उनकी हिस्सेदारी इस अवधि में 83.4 प्रतिशत से बढ़कर 86.4 प्रतिशत हो गई. बता दें कि बड़ा कर्जदार उसे माना जाता है जिस पर बैंकों का 5 करोड़ से ज्यादा बकाया हो.

आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार बड़े कर्जदारों का सकल एनपीए अनुपात भी 7 प्रतिशत से बढ़कर 10 .6 प्रतिशत हो गया है, जिसमें सार्वजनिक बैंकों में वृद्धि सर्वाधिक है. चिंता की बात यह है कि बड़े कर्जदारों के फंसे कर्ज  की राशि कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है. सभी बैंकों के सकल एनपीए में सौ बड़े कर्जदारों की मार्च 2015 में हिस्सेदारी मात्र 0.7 प्रतिशत थी जो एक साल में बढ़कर मार्च 2016 में 19.3 प्रतिशत हो गई.

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