भोपाल: गुजरात के गिर अभयारण्य में गुजरात की शान समझे जाने वाले बब्बर शेर सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में गुजरात के वनमंत्री गनपत वासवा ने विधानसभा में बताया कि पिछले दो साल में राज्य में 184 शेरों की मौत हो गई है, बावजूद इसके वहां की सरकार मध्य प्रदेश को शेर देने से मना कर चुकी है. मरने वाले शेरों में वृृद्ध, युवा और शावक शामिल हैं. इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट में जस्टिस सुभाष रेड्डी और जस्टिस वीएम पंचोली की युगल पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भी दिया है. अब मध्यप्रदेश के वन्यजीव कार्यकर्ता इसी प्रकरण में पक्षकार (इंटरवीनर) बनने की तैयारी कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश की सिंह परियोजना को 27 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन अब तक एक भी शेर प्रदेश को नहीं मिला, दरअसल, कूनो पालपुर में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) की गाइडलाइन की कमियों को लेकर गुजरात सरकार के सवाल खत्म नहीं हो रहे हैं,13 मार्च को दिल्ली में हुई विशेषज्ञ समिति की बैठक में भी यही सवाल आ गए, गुजरात के वन अफसरों ने कह दिया कि गाइडलाइन की शर्ते पूरी कर दो, हम शेर देने को तैयार हैं, यह भी सुप्रीम कोर्ट में लगे अवमानना प्रकरण को देखते हुए कहा गया.
उधर, शेर पर खतरा मंडरा रहा है, 2015 की गिनती के मुताबिक गुजरात में 523 सिंह थे, इनमें से 184 पिछले दो साल में मर चुके हैं. सिंहों की मौत का बड़ा कारण सड़क व रेल दुर्घटना, अभयारण्य में कुओं में डूबने और इलेक्टि्रक फेंसिंग बताई गई है. कागजी कार्यवाही में उलझे अफसर ये नहीं समझने को तैयार है कि उनकी लेट लतीफी का खामियाजा विलुप्ति की कगार पर पहुंचा बब्बर शेर भुगत रहे है.
रिहायशी इलाके में पेड़ पर आराम से बैठा था ये शेर
तो इस वजह से हमेशा शेर की खाल लपेटे रहते हैं भगवान शिव